SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (०१) [भाग-1] “आचार" - अंगसूत्र-१ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) श्रुतस्कंध [१.], अध्ययन [१], उद्देशक [७], मूलं [१७], नियुक्ति: [१७१] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित.....आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[१] “आचार" मूलं एवं शिलांकाचार्य-कृत् वृत्ति: शख.परिर प्रत उद्देशका सूत्रांक [५७]] दीप श्रीआचा- गद्वेषद्रुमाः परभूतोपमर्दनिष्पन्नसुखजीविकानिरभिलाषा साधवो, नान्यत्र, एवंविधक्रियावयोधाभावादिति ॥ एवं व्यव- रावृत्तिःला स्थिते सति(शी०) लजमाणे पुढो पास अणगारा मोत्ति एगे पवयमाणा जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं वाउकम्मसमारंभेणं वाउसत्थं समारंभमाणे अण्णे अणेगरूवे पाणे विहिंसति । तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेइया । इमस्स चेव जीवियस्स परिवंदणमाणणतयणाए जाईमरणमोयणाए दुक्खपडिघायहेउं से सयमेव वाउसत्थं समारभति अण्णेहिं वा वाउसत्थं समारंभावेइ अण्णे वाउसत्थं समारंभंते समणुजाणति, तं से अहियाए तं से अबोहीए, से तं संबुज्झमाणे आयाणीयं समुद्राए सोचा भगवओ अणगाराणं अंतिए इहमेगेसिं णायं भवति-एस खल्लु गंथे एस खलु मोहे एस खलु मारे एस खल्ल णिरए, इच्चत्थं गड्डिए लोए जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं वाउकम्मसमारंभेणं वाउसत्थं समारंभमाणे अण्णे अणेगरूवे पाणे विहिंसति (सू०५८) अनक्रमा ॥७७॥ [165]
SR No.035001
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 01 Aachaar Mool evam Vrutti Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages314
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size64 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy