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(१५५)
वकी० - बस तो दोनोही में पौषधादि कीजिये.
इन्द्र० - नहीं इसमें तो दूसरी ही तिथिको लेते है. और कहते है. "औदयिकी !" इसका कुछ मतलब समझ में नहीं आया ! मैं तो अबतक यही समझता हूं कि यह कोई पारिभाषीक शब्द है.
वकी० - पारिभाषिक शब्द है तो अन्यत्र कहीं पर भी दिखलाईयें ?
इन्द्र० - अन्यत्र कहीं पर या किसी कोश में "औदयिक” का 'दूसरा ' ऐसा अर्थ किया हुआ नहीं है ?
वकी० - नहीं कहीं परभी "औदयिक" शब्द का अर्थ दूसरा ऐसा नहिं किया है.
इन्द्र० - तो इसमें असली तत्र क्या है सो समझाईये ? वकी० - शास्त्रकारों ने उस तिथिपनेका उदय दूसरे दिनही माना है. सबब जैन पंचांग में तो कोई भी तिथिकी वृद्धिही नहीं होती है और अन्य पंचांगकार तो वृद्धितिथि मानते हैं, और अपने यहां भी कालदोषके सबब अन्यपंचांग से ही तिथि मुकरर करनेका काम लिया जाती है तो उसकी मानी हुई वृद्धि, कि जो नशासे खिलाफ है: उस वृद्धिको पर्वतिथिमें कैसे डाल दि जाय ? इसी सबब से ही शास्त्रकारने ऐसी लौकिक वृद्धितिथिका उदयको दो दिन नहीं मानकर दूसरे दिन ही उदय माना है. ऐसी रीति सें उस बख्त अपने यहां जब उदय ही दुसरे दिनको माना तब पहला दिनतो उस तिथिके उदय विना
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