SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 180
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अर्थात् एकादशी विना ही रहा है, इसीसे उसके पहले दिन एकादशी नहीं किंतु दशमी अपने आप ही रह गई. फीर श्री सेनप्रश्नमें पर्वतिथिकी वृद्धि कैसे होती या रहती है ? इन्द्र०-यहतो मेरी समझमें आ गया, लेकिन मूल बाततो यह है कि पूर्णिमा और अमावास्याके क्षयवक्त आप त्रयोदशीका क्षय करते हो वैसे ही वृद्धि में भी त्रयोदशीहीकी वृद्धि करते हो उसमें तो आप खास उदयवाली चतुर्दशीको छोड़कर ही उदयवती पूर्णिमा को ही चतुर्दशी बनाते हो यहतो स्पष्ट तपा अयोग्य ही है न? ___ वकील-पहले दिन तो उदयमें पूर्णिमा है ही नहीं "औदयिकी" के नियमसे और श्रीमान् हीरसूरिजी माहाराजकी भी आज्ञा पालन करनेवालोंको एकांत उदयका आग्रह हो ही नहीं सकता! देखिये हीरप्रश्न पृ. (७८-७९ खोलकर) प्रश्न-पंचमीतिथिस्त्रुटिता भवति तदा तत्तपः कस्यां तिथौ ? पूर्णिमायां च त्रुटितायां कुत्रेति ? उत्तरं-अत्र पंचमीतिथिस्त्रुटिता भवति तदा तत्तपः पूर्वस्यां तिथौ क्रियते पूर्णिमायां च त्रुटितायां त्रयोदशीचतुर्दश्योः क्रियते, त्रयोदश्यां तु विस्मृतौ प्रतिपद्यपि इति ॥ अर्थ:-पंचमी तिथिका क्षय हो तब उसका तप किस तिथिमें करना और पूर्णिमाका क्षय हो तब उसका तप किस तिथिमें करना उत्तर-जब पंचमीका क्षय हो तप उसका तप पूर्वतिथिमें Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034996
Book TitleParvtithi Prakash Timir Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrailokya
PublisherMotichand Dipchand Thania
Publication Year1943
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy