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________________ (११५) गुला०-अजी! साहब! इनके सम्यक्त्वकी कथाकों तो जाने दीजिये ! शेठ पूनमचंदजीकों तो इस शादीमें करीब वीसपचीसहजारका मुनाफा है ! और शेठ चंपालालजीको करीव एकलाख रूपे खर्च हो जायगे. परंतु मंदिरमें एकदिन तकका भी पता नहीं है ! अगर शेठजी वीसपचीसहजार रूपे लगाते, और बकाया रकम यदि किसी धार्मिक कार्य में, अगर दुःखीत जैनसमाजकी उन्नती व ज्ञातिकी उन्नतीमें खर्च करते, तो इहलोक परलोक दोनो जगह कल्याणके साथ वाह वाहभी होती. इधर शेठ पूनमचंदजी तो बहुके साथ २ वीसपचीसहजार जितनी रकमको घरमें रख लेवेंगें ! और धार्मिक कार्य, अगर ज्ञातीकार्यमें तो "मौनमाश्रेयत्" (इस मुताबिक परस्पर बात चलती ही थी इतने में दोचार बंदिजन आ पहुचे!) ____ 'जय हो! जजयानकी, बात करूं ज्ञानकी; ध्यान दे सुनिये, कलियुगकी कमाई है.' "रामचंद्रसरिने शास्त्र के प्रमाण बिना नये मतकी अजब एक रिति चलाई है. बीज आदि तिथियोंको तोड़कर मेलसेलकी खोटीही धुन लगाई है! 'चार पीढी भूल गये' ऐसा वैसा बोलकर अपने मोटोंकोभी कीर्तिपर कालिमा लगई है ! तच्चतरंगिणी नाम लेकर भोलीभोली जनताको भ्रममें झुकाई है."इस कवित्तको सुनकर सब लोग हँस पड़े! कितनेक व्यक्तियोंकों गुस्साभी आया, मगर कर ही क्या सकतेथे? इतने में किसीने एक बंदिजनसे पुछा कि तुमारा नाम क्या है, और तुम कहांसे आये हो ? Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034996
Book TitleParvtithi Prakash Timir Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrailokya
PublisherMotichand Dipchand Thania
Publication Year1943
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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