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________________ (११३) ही जोर दियाथा ! आपभी इस चर्चा में अबतो हीरप्रश्न - सेनप्रश्नसेही काम लेना. इन्द्र० - यह बात मेरे ख्याल से बाहर नहीं हैं. अच्छा, अब इस बातको बंद कीजिये. ( सामने देखकर) देखो! वकीलजी वगैरहभी आगये है. (इतने में वकीलसाहब, वगैरह आकर कुंवरसाहब के पास बैठते है, और कुछ वक्त बाद कुंवर साहब से वकीलसाहब पुछते है.) वकील० - ( कुंवरसा ० से ) आपके वहां और यहां (आपके सुसरालमें ) मातृगृहकी स्थापना कीसकी है ? और लग्नक्रिया किस विधि से की गई हैं ? इन्द्र०- ( वकीलसा० से) आपके प्रश्नका मतलब मैं समझ गया ! और इस प्रश्नका जवाब भी यह है कि दोनों जगह गिरजापुत्र की स्थापना है ! लग्नक्रियाभी ब्राह्मणविधिसें हुई है. वकी०-ओ-हो-हो ! सम्यक्त्र धारीयों के यहां, और ऐसा प्रचार ? ( इतनेमें) वृद्धि ० - वकीलसाहब ! आप देखिये तो सही ! कल ही भैरौजीके यहां और माताजीके वहां और हनुमानजीके यहां मोटरें दोड़ेगी ! और कुंवरसाहब भी झुकझुककर नमन करेंगें. वकी० - सेठ पूनमचंदजीने तो रामविजयजी मा० से सम्यक्त्व लिया है, और शेठ चंपालालजीके यहां तो राजेन्द्र सम्यक्त्व है ! शायद दोनो जगह शादीके सबब सम्यक्त्वको तीजोरी में बंद कर दिया हो. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034996
Book TitleParvtithi Prakash Timir Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrailokya
PublisherMotichand Dipchand Thania
Publication Year1943
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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