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निमित्त
संक्रमण आदि होता है। यदि उदाणा भाव न होवे तो अपकर्षण आदि कुछ नहीं होता है ।
प्रश्न- क्रमशः ही पर्याय होती है ऐसा सोनगढ से प्रतिपादन रूप शास्त्र निकाला है, क्या यह सत्य है ?
उत्तर-यह शास्त्र सोनगढ ने किस अभिप्राय से निकाला है ? शास्त्र प्रकाशित करने में तीन अभिप्राय होता है । (१) इस शास्त्र द्वारा अनेक जीव लाभ उठा सकते हैं। (२) इस शास्त्रद्वारा कोई जीव लाभ उठा नहीं सकता । (३) इस शास्त्रके द्वारा कोई जीवको लाभ या हानि कुछ नहीं हो सकता । अब सोचिये ! इस शास्त्र को किस अभिप्राय से प्रकाशित किया गया है ? तब कहना होगा कि बहुत जीव लाभ उठा सकते हैं । इससे स्वयं सिद्ध हुआ कि इस शास्त्र के पढने से बहुत जीवों की पर्याय सुधर सकती है और न पढने से सुधर नहीं सकती । तब पर्याय क्रमबद्ध कहाँ रही ?
प्रश्न-एक साथ जीव में एक भाव होगा या विशेष ?
उत्तर-एक जीर में एक साथ में पांच भाव हो । सकते हैं । ( १ ) औदयिक भाव, (२) क्षयोपशमभाव (३) उपशम भाव ( ४ ) क्षायिक भाव, (५) पारणामिकभाव । एक भावमें दूसरे भाव का अन्योन्य अभाव है। तो कौनसे भाव की अवस्थाको क्रमबद्ध पर्याय कहेंगे, यह
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