________________
निमित्त
मछली को चलाता नहीं है । मछली में जैसे चलने की क्रिया होती है वैसी जल में नहीं होती।
(४) लोक में एक अखण्ड धर्मास्तिकाय नाम का द्रव्य लोक के बराबर है जो स्वयं निष्क्रिय और निष्कम्प है । जीव और पुद्गल यदि गमन करे तो धर्मास्तिकाय को निमित्त कहा जाता है परन्तु धर्मास्तिकाय जबर्दस्ती चलाता नहीं है । जैसी जीव पुद्गल में गमन की क्रिया हुई वैसी क्रिया धर्मास्तिकाय में नहीं होती।
( ५ ) लोकाकाश में एक एक प्रदेश पर एक एक काल द्रव्य है जो निष्क्रिय और निष्कम्प है। जीव और पुद्गल जैसी अवस्था धारण करे तब काल को निमित्त कहा जाता है परन्तु काल द्रव्य जबर्दस्ती से आपकी अवस्था कराता नहीं है । जैसी जीव पुद्गल में अवस्था होती है वैसी अवस्था काल द्रव्य में नहीं होती । इससे सिद्ध हुआ कि उदीरणा भाव में भाव प्रधान है और भाव के अनुकूल निमित्त पर मात्र आरोप आता है।
प्रश्न-नो कर्म राग कराता नहीं है परन्तु आत्मा स्वयं अपराध करता है ऐसा कोई आगम वा वाक्य है ?
उत्तर--आगम का पास्य है । समयसार बंध अधिकार गाथा २६५ में लिखा है कि
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com