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निमित्त
अर्थ--निश्वयकर पुद्गल द्रव्य के स्वयं परिणाम स्वभाव होने पर जैसा प्रदगल कारण हो उस स्वरूप कार्य होता है यह प्रसिद्ध है । उसी तरह जीव के स्वयं परिणाम भाव रूप होने पर भी जैसा कारण होता है वैसा ही कार्य होता है । इस न्याय से सिद्ध हुआ कि कारण के अनुकूल कार्य होता है अर्थात् निमित्त के अनुकूल ही नैमित्तिक की अवस्था होती है । उसी प्रकार समयसार की गाथा नं० ३२ की टीका, गाथा नं. ८६ की टीका आदि अनेक जगहों पर निमित्त नैमित्तिक संबन्ध दिखलाया है।
प्रश्न-यदि निमित्त के अनुकूल ही आत्मा का भाव हो तो मोक्ष कैसे हो सकता है ?
उत्तर-औदयिक भाव के साथ में कर्म का निमित्त नैमित्तिक सम्बन्ध है । औदयिक भाव में आत्मा पराधीन ही है परन्तु आदायिक भाव के साथ में एक दूसरा आत्मा में उदीरणा रूप भाव होता है जो भाव बुद्धिपूर्वक ज्ञान की उपयोग रूप अवस्था में ही होता है । उस भाव में आत्मा स्वतन्त्र है अर्थात् उदीरणाभाव में आत्मा पुरुषार्थ कर सकता है । उदीरणा भाव में पुरुषार्थ करने से जो कर्म सत्ता में पड़ा है उस कर्म में अपकर्षण, उत्कर्षण, संक्रमण तथा द्रव्य निर्जरा होती है, जिस कारण से सत्ता में पड़े हुए कर्म की शक्ति हीन २ होती जाती है । सत्ता के कर्म की
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