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निमित्त
में लाया जाता है उस भाव का नाम उदीरणा भाव है। उदीरणा भाव में आत्मा के परिणाम कारण हैं और कर्म का उदयावली में आना सो कार्य है।
प्रश्न--औदयिक भाव और उदीरणामाव में किसकी प्रधानता है ? ____उत्तर--ौदयिक भाव में कर्म की प्रधानता है और उदीरणाभाव में आत्मा की प्रधानता है।
प्रश्न--ौदयिक तथा उदीरणाभाव में विशेष क्या अन्तर है ?
उत्तर--ौदयिक भाव समय समय में होता है और वह भाव ज्ञान की उपयोग रूप अवस्था तथा लब्धिरूप अवस्था दोनों में होती है । जब उदीरणाभाव असंख्यात समय में होता है और वह भाव ज्ञानकी उपयोग रूप अवस्था में ही होता है, परन्तु लब्धिरूप अवस्था में कभी नहीं होता है ।
प्रश्न--क्या औदयिक भाव तथा उदीरणाभाव दोनों साथ में रहते हैं ?
उत्तर-जहां औदयिक भाव है वहां उदीरणाभाव होवे अथवा न भी होवे परन्तु जहां उदीरणा भाव है वहां औदयिक भाव नियम से है। जैसे विग्रहगति में, अपर्याप्त
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