SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१६) तसव्वुफ श्रथवा सूफीमत का क्रमिक विकास [ लेखक - श्री चंद्रबली पांडेय, एम० ए०, काशी] ( १ ) सूफीमत' के उद्भव के संबंध में विद्वानों में गहरा मतभेद है । यह मतभेद सूफीमत के दार्शनिक पक्ष की गहरी छान-बीन का फल नहीं है । मत तो किसी वासना, भावना या धारणा की संरक्षा अथवा उसके उच्छेद के प्रयत्न का परिणाम होता है । प्रत: जो लोग उसके मर्म से परिचित होना चाहें उन्हें सर्वप्रथम उसके इतिहास पर ध्यान देना चाहिए । इतिहास के आधार पर अध्ययन करने से किसी मत का सथा स्वरूप अपने शुद्ध और निखरे रूप (१) सूफी शब्द की व्युत्पत्ति के विषय में भी अनेक मत हैं । कुछ लोगों की धारणा है कि मदीना में मसजिद के सामने एक सुफ्फा ( चबूतरा ) था । उसी पर जो फकीर बैठते थे वे सूफी कहलाए। दूसरे लोगों का कहना है कि सूफी शब्द के मूल में सफ्फ (पंक्ति) है। निर्णय के दिन जो लोग अपने सदाचार एवं व्यवहार के कारण औरों से अलग एक पंक्ति में खड़े किए जायेंगे वास्तव में उन्हीं को सूफी कहते हैं। तीसरे दल का कथन है कि सूफी वस्तुतः स्वच्छ और पवित्र होते हैं। सफा होने के कारण उनको सूफी कहते हैं। चौथे दल के विचार में सुफी शब्द सोफिया (ग्रीक) का रूपांतर है । ज्ञान के कारण ही उनको सूफी कहा जाता है । मत है कि सूफी शब्द वास्तव में सुफ ( अन ) से बना है । सूकधारी ही बास्तव में सुफी के नाम से ख्यात हुए । निकल्सन, ब्राउन, मारगो लिबध प्रभृति विद्वानों ने सिद्ध कर दिया है कि वास्तव में सूफी शब्द सुफ से बना है। अनेक मुसलिम प्रालिमों ने भी इसे स्वीकार किया है । प्रस्तु, हमको यही व्युत्पत्ति मान्य है । बपतिस्मा देनेवाला जान या बोहवा भी सूकधारी था, पर अब सूफी का प्रयोग मुसलिम संत या फकीर के लिये ही नियत सा समझा जाता है पर अधिकतर विद्वानों का I Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034975
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1936
Total Pages134
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy