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नागरीप्रचारिणी पत्रिका छोरि के लाज भगे दोऊ भूपति आस तजी धन प्राण धरा की। भागत जोर जगी गरमी तब बाय तकी ठंडी राजपुरा की ॥२८॥
भावार्थ-सभी ने पृथ्वी पर सब हथियार फेंककर घोड़ी पर फराकी मारी और पैदल सेना अत्यन्त परिश्रम से भागी। घोड़े भी थक गए। दोनों राजा (कटोच और जसुआल ) लज्जा परित्याग कर भाग निकले मानो धन, प्राण, राज्य की प्राशा छोड़ दी। भागनेवालों को गर्मी प्रा गई जिन्हें राजपुर की टंडी वायु ने विश्राम दिया।
सवैया जारि चनौर गुहासन को तब श्री वृजराज कलेशर आयो। लूटत जारत देशहिता छिन छूट पठाइ नदौन जरायो ।। जानि के मीत खरो अपनो तत्काल करहर को भूप बुलायो । कौपि उठे मॅडियाल जबै वृजराज निवेश नदौन में आयो ॥२६॥
भावार्थ-वृजराजदेव चनौर और गुहासन नगरों को जलाकर कलेशर में आए और राजा कहलर ( विलासपुर ) को अपना परम मित्र जानकर बुलाया। वृजराजदेव को नादौन में आया हुमा सुनकर मंडी का राजा भयभीत हो गया।
मागे चलकर कवि ने महाराजा रणजीतदेव की स्तुति में एक कवित्त कहा है। वह इस प्रकार है
कविच थोरि पान मान रहे शाह पातशाहन की,
पीठ जिन देखी है दीना बेगषान की। मंडी प्री घलूर प्राइ दाखिल हजूर भए,
छोरि के गरूर शूरवीर के गुमान की ॥ प्रसरयो प्रताप जो युप्राध महाराजहुँ को,
कौनहू न ठानी मत मीयाँ सो मिलान की।
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