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नागरीप्रचारिणी पत्रिका है। उसको इसलाम की सनद मिल गई है। सनद का तात्पर्य यह नहीं है कि सूफियों को आगे चलकर इसलाम के कट्टर काजियों का भय न रहा। इस प्रकार की धारणा सर्वथा असत्य होगी। हम जानते हैं कि बहुत सावधानी से काम लेने पर भी सफी अपने विचारों के लिये क्रूर शासकों से भीषण दंड पाते रहे हैं। प्रस्तु, हमारे कहने का सीधा-सादा अर्थ यह है कि गजाली के अनंतर तसव्वुफ इसलाम से अभय हो गया, किंतु सूफियों को कभी भी इसलाम से अभयदान नहीं मिला। अभय की कल्पना भी इसलाम को असह्य है; गजाली तो भय का समर्थक ही था। सूफियों के प्राण तड़पते ही रहे, उनको स्वतंत्र जीवन न मिला। सूफियों की तड़प ने जो रूप धारण किया वह संसार के साहित्य में अपना अलग मूल्य रखता है, उसकी गति निराली है। तसव्वुफ वास्तव में मरुस्थल का नंदन है।
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