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________________ ५०४ नागरीप्रचारिणी पत्रिका पर से गुह्य विद्या की शिक्षा देता और बाहर से कट्टर मुसलिम बना रहता था । वह ऊपर से इसलाम के क्रिया-कलापों का प्रचार, भीतर भीतर गुप्त तत्त्व का प्रसार करता था । उसकी दृष्टि में तसव्वुफ उम्र होता है। उसके विचार में वही सूफी है जो परमेश्वर में इतना निरत रहता है कि उसके अतिरिक्त किसी अन्य सत्ता का उसे भान भी नहीं होता। जुनैद के गुप्त-विधानों से तसव्वुफ को चाहे जितनी मदद मिली हो, पर उसके निबंधों से गजाली को पूरी सहायता मिली । इल्लाज तो जुनैद का शिष्य ही था । जुनैद का मान व्याख्यान शिष्यों की मनोवृत्तियों को साक्षात्कार के लिये लालायित करता था । वह स्वतः प्रावेश की दशा में सूफी मत का विधान करता और इसलाम के नृशंस शासकों को शांत रखता था । सूफा मत का शिरोमणि, तसव्वुफ का प्राण, अद्वैत का आधार, शहीदों का आदर्श सचमुच हल्लाज ही था । हल्लाज का प्रचलित नाम मंसूर है । मंसूर का 'अनलहक' सूफी मत की पराकाष्ठा हो नहीं परम गति भी है । यह उद्घोष हल्लाज की स्वानुभूति का प्रसाद है, किसी कोरे उल्लास का उद्भाव नहीं। जिन मसीही पंडितों' को इसमें संदेह है और जो हल्लाज को मसीह की छाया मात्र समझते हैं उनको यह अच्छी तरह स्मरण रखना चाहिए कि मसीह पिता का राज्य पृथिवी पर स्थापित करने आए थे, प्रियतम में तल्लीन होने नहीं; मसीह चंगा करने आए थे, विरह जगाने नहीं । फलतः मसीह के उपासकों ने रक्त से भूमंडल को रँगा और हल्लाज के प्रशंसकों ने अपने रक्त से संसार को अनुरक्त कर प्रेम का प्रसार किया । मसीह ने पड़ोसी के साथ साधु व्यवहार करने का विधान किया तो मंसूर ने पड़ोसी को आत्मरूप देखने (1) Studies in the Psychology of the Mystics p. 258. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034975
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1936
Total Pages134
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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