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________________ ३६४ __ नागरीप्रचारिणी पत्रिका के नीचे बहनेवाली ) का गरम जल कब भाता है ( उनको कब याद आता है ) ? जिन्होंने पंजल के मीठे मीठे माम चुन-चुन खाए हैं अब उन्हें यहाँ का खरबूजा कब भाता है ? हम लिख लिखकर थक गई और आँखें देख-देखकर पक गई परंतु नए स्वरूप को छोड़कर कौन पाता है। यहाँ अब बरसात आ गई, उनका मन शांत है, उनका ध्यान इधर कब आता है ! यह कवि का कटाक्ष राजकुमार के प्रति हँसी का सूचक है। दोहा-काहू मीत कटोच के लिखि पतियाँ यह बात । दत्त न और विचार कछु यही मिलन की बात ॥४६॥ भावार्थ-कटोच राज्य के किसी मित्र ने राजा घुमंडचंद (काँगड़ापति ) को पत्र लिखा कि और कोई विचार मत करो, यह मिलने का समय है। सवैया देश विदेश नरेशन देशहि मानत हैं इनको शिर नाइ के । जो करि प्रीति मिल्यो इनसे सो रह्यो निरभीत सिरी थिर पाइ के॥ श्री यदुराय कृपा करि दत्त रह्यो इनको यश भूतल छाइ के। ताते कटोच संकोच करो मत बेग मिलो वृजराज से प्राइ के॥४७॥ __ भावार्थ-प्रत्येक देश के राजा नित्य इनको ( जम्मूपति ) शिर नवाते हैं। जो कोई इनसे प्रीति कर मिलता है वह सदा निर्भीक रहता है। श्रीकृष्ण महाराज की कृपा से इनका यश पृथ्वी पर छाया हुआ है इसलिये आप (राजा काँगड़ा ) कोई विचार न करके तुरंत वृजराजदेव से प्राकर मिले। दोहा-पढ़ि कागद वह मीत को मिल्यो घुमंडा पाइ। मीयाँ' को जयदेव करि बैठ्यो शीश निवाइ ॥४८॥ (१) यहाँ राजपुत्रों की पदवी मीयां थी। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034975
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1936
Total Pages134
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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