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हिंदी काव्य में निर्गुण संप्रदाय
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मृत्यु के निकट कबीर बहुत प्रसिद्ध रहे होंगे । इसलिये उनकी जन्म तिथि का लोगों को ज्ञान रहा हो, चाहे न रहा हो, उनकी पुण्यतिथि का ज्ञान अवश्य रहा होगा । उनकी निधन तिथि के बारे में दो दोहे प्रचलित हैं, जो प्रायः एक ही के रूपांतर मालूम होते हैं' । एक के अनुसार उनकी मृत्यु सं० १५०५ और दूसरे के अनुसार १५७५ में हुई । इनमें से एक अवश्य सही होना चाहिए। पहला अधिक संगत मालूम पड़ता है । उसके अनुसार उनकी आयु लगभग ८० वर्ष की होती है । अनुमान यह होता है कि सिकंदर लोदी ( राज्य सं० १५४६ से १५७२ ) के साथ कबीर का नाम जोड़ने के उद्देश्य से ही किसी ने 'औ पाँच मो' की जगह 'पछत्तरा' कर दिया है । कबीर पर किसी शासक की कोप दृष्टि अवश्य हुई थी, पर वह शासक सिकंदर ही था, इसका कोई विशेष प्रमाण नहीं मिलता । प्रियादासजी ने सिकंदर ही को अधिक जुल्मी सुना होगा, इसी से उसके द्वारा कबोर पर जुल्म होना लिख दिया होगा ।
कबीर के जीवन की घटनाओं में शेख़ तक़ी का नाम भी लिया जाता है । रेवरेंड वेस्क्ट ने इस नाम के दो व्यक्तियों का उल्लेख किया है, एक मानिकपुर कड़ा के और दूसरे भूँसी के । मानिकपुरवाले शेख़ तक़ी चिस्तिया ख़ानदान के थे। उनकी मृत्यु सं० १६०२ ( ई० १५४५ ) में हुई । सीवाले तको सुहर्वर्दी खानदान के थे और स्वामी रामानंद के समकालीन थे। इनकी मृत्यु सं० १४८६ ( ई० १४२८ ) में हुई । परंपरा के अनुसार भैँसीवाले शेख़ तक़ी ही कबीर
(१) संवत पंद्रह सौ श्री पांच मो, मगहर को किया गवन ।
अगहन सुदी एकादसी, मिले पवन में पवन ॥ १ ॥ संवत पंद्रह सौ पछत्तरा, कियो मगहर को गवन । माघ सुदी एकादसी, रला पवन में पवन ॥ २ ॥ करवतु भला न करबट तेरी । लागु गले सुन विनती मोरी ॥ ...
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