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________________ भारतवर्ष की सामाजिक स्थिति ४६५ इसका प्रारंभ इस विश्वास के कारण हुआ होगा कि सर्प पाताललोक में पृथ्वी के नीचे रहते हैं और धन भी बहुधा पृथ्वी में गाड़कर ही रखा जाता है। रामपुरवा के स्तूप के रक्षक सर्प ही हैं जिनकी आकृतियाँ शिलापट्टों पर उत्कीर्ण रामपुरवा के स्तूप के साथ देख पड़ती हैं। इस स्तूप में गौतम बुद्ध का भस्मावशेष रखा हुआ था। नागदंशन का इलाज एक प्रकार की क्रिया के अनुष्ठान से किया जाता था जिसे उदकुंभ विधान' कहते थे। भाष्यकार ने इस अनुष्ठान का भैरवतंत्रनिर्देशपूर्वक विशद वर्णन किया है जिसके अनुसार मंत्रपूत कलश में मंत्रपूत जल भरकर सर्प के काटे को झाड़ते थे। ध्रुवसिद्धि की प्रणाली नागमुद्रावाली नहीं प्रत्युत रासरत्नावलोवाली है, जैसा भाष्यकार ने बतलाया है। संभवतः लोगों का विश्वास था कि नागमुद्रावाली किसी वस्तु को आमंत्रित करके प्रयोग करने से सर्पविष उतर सकता है। मालविकाग्निमित्र में सर्पदंशन का बहाना करनेवाले विदूषक का मिथ्या सर्प-विष इसी प्रकार उतारा जाता है। ___ बच्चों को शुभ जंतर पहनाने की चाल का भी कालिदास में हवाला मिलता है। लोग इंगुदी के फल को भी शुभ समझते थे और बच्चों को उनकी माला बनाकर पहनाते थे। दैवचिंतकों अर्थात् भविष्यवक्ता प्रहदशा के पंडितों का भी उल्लेख हुआ है। इस प्रकार कालिदास के समय की जनता भी, सब काल और देश की जनता की भाँति, कई प्रकार की भ्रांतियों में विश्वास करती थी। यज्ञोपवीत ब्राह्मण का चिह्न था और धनुष क्षत्रिय का। परशुराम का यज्ञोपवीत तो जमदग्नि ऋषि के ब्राह्मणत्व का प्रतिनिधि (1) मालविका०, ५। (२) वही। (३) रक्षामङ्गलम् ।-अभि० शाकुं०, ७, शकुंतला। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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