SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 393
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नागरी प्रचारिणी पत्रिका ऊपर कहा जा चुका है कि हिंदी भाषा के अंतर्गत अनेक भाषाएँ (ब्रज, राजस्थानी आदि ) और बोलियाँ (खड़ी, अवधी, कन्नौजी आदि ) हैं तथा उनमें प्रयुक्त शब्द के रूपों में बहुत भिन्नता पाई जाती है । संख्यावाचक शब्दों पर भी यह कथन चरितार्थ होता है । जैसा ऊपर कहा गया है, हिंदी की प्रायः सभी बोलियों और भाषाओं के संख्यावाचक शब्द संस्कृत के संख्यावाचक शब्दों से ही निकले हैं, पर भिन्न प्राकृतों और अपभ्रंशों से होकर आने के कारण भिन्न भिन्न बोलियों में संस्कृत के एक एक शब्द के अनेक रूपांतर हो गए हैं । उदाहरणार्थ संस्कृत के 'ऊनचत्वारिंशत्' का लीजिए । खड़ी बोली में इसका रूप 'उतालीस', भोजपुरी में 'श्रोतालिस', मैथिली में 'औचालिस' तथा राजस्थानी में 'गुणतालीस' पाया जाता है । इस लेख में केवल खड़ी बोली के संख्यावाचक शब्दों की उत्पत्ति के संबंध में विचार करना है । हिंदी के अंतर्गत सब भाषाओं और बोलियों के संख्यावाचक शब्दों की उत्पत्ति पर यदि लिखा जाय तो एक मोटी पुस्तक तैयार हो जाय । इस निबंध अंत में हिंदी के अंतर्गत कुछ बोलियों और भाषाओं के तथा संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश के संख्यावाचक शब्दों का एक चार्ट दिया जाता है जिसको देखने से स्पष्ट हो जायगा कि हिंदी की भिन्न भिन्न बोलियों के संख्यावाचक शब्द संस्कृत के ही शब्दों से निकले हैं । साथ ही साथ उससे यह जानने में भी सहायता मिलेगी कि खड़ी बोली के संख्यावाचक शब्द अवधी, व्रजभाषा, कन्नौजी, राजस्थानी, भोजपुरी और मैथिली आदि के संख्यावाचक शब्दों से कितनी समता और कितनी भिन्नता रखते हैं । संख्यावाचक शब्द अग्रलिखित सात मुख्य भागों में विभाजित किए जा सकते हैं संख्यावाचक शब्दों का विभाग Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com ३७८ हिंदी की विभाषाओं में रूप भेद का कारण •
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy