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नागरीप्रचारिणी पत्रिका ऊपर किए हुए वर्णन से यह भी प्रकट होता है कि हिंदी भाषा प्राकृत और अपभ्रंश से होती हुई संस्कृत से निकली है। अतः
हिंदी के अधिकांश शब्द भिन्न भिन्न प्राकृत उत्पत्ति की दृष्टि से
और अपभ्रंशो से होकर आए हुए संस्कृत के हिंदी शब्दों का वर्गी
ही शब्द हैं। इस समय हिंदी में जिन शब्दों करण
का प्रयोग होता है वे उत्पत्ति की दृष्टि से अनेक भागों में विभाजित किए जा सकते हैं। "ऐसे शब्दों को, जो सीधे संस्कृत से हिंदी में पाए हैं, 'तत्सम' शब्द कहते हैं। वे शब्द जो सीधे प्राकृत से आए हैं अथवा जो प्राकृत से होते हुए संस्कृत से निकले हैं 'तद्भव' शब्द कहलाते हैं। तीसरे प्रकार के शब्द वे हैं जिन्हें 'अर्धतत्सम' कहते हैं। इनके अंतर्गत वे सब संस्कृत के शब्द प्राते हैं जिनका रूपात्मक विकास प्राकृत-भाषियों द्वारा होते होते, भिन्न रूप हो गया है। इन तीनों प्रकार के शब्दों के अतिरिक्त हिंदी में कुछ शब्द ऐसे भी मिलते हैं जिनकी व्युत्पत्ति का कोई पता नहीं चलता। ऐसे शब्दों को 'देशज' कहते हैं। एक और प्रकार के शब्द जो किसी पदार्थ की वास्तविक या कल्पित ध्वनि पर बने हैं और जिन्हें 'अनुकरण' शब्द कहते हैं, हिंदी भाषा में पाए जाते हैं। ।" इन सब शब्दों के अतिरिक्त हिंदी में कुछ ऐसे भी शब्द मिलते हैं जो विदेशी भाषाओं (अरबी, फारसी, तुर्की, अँगरेजी प्रादि) से हिंदी में ग्रहण किए गए हैं। खड़ी बोली के अधिकांश संख्यावाचक शब्द तद्भव' शब्दों के अंतर्गत आते हैं। कुछ अर्धतत्सम शब्द भी हैं। कुछ तत्सम शब्दों का भी प्रयोग होता है, पर वे सर्वसाधारण द्वारा प्रयुक्त नहीं हैं। दो-एक विदेशी शब्द भी मिलते हैं। देशज शब्दों का प्रभाव ही सा है। इन सब प्रकार के शब्दों के उदाहरण, संख्यावाचक शब्दों की उत्पत्ति के प्रसंग में, आगे मिलेंगे।
(१) हिंदी भाषा और साहित्य'-रायबहादुर श्यामसुंदरदास ।
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