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नागरीप्रचारिणी पत्रिका हैं। उनकी नाप इंच x ४२इंच से६इंच x.०६ इंच थी। इन सिक्कों की मिश्रित धातु इतनी कड़ी नहीं है। पिछले काल के चिह्नांकित सिकों द्वारा उन पर सरलता से खरेच हो सकती है। किसी सिक्के पर ४ से अधिक चिह्न अंकित नहीं हैं। वे चिह्न ये हैं-(१) मध्यस्थ चिह्न के आसपास तीन टाँगों की सी प्राकृति, (२) ढाल सरीखी
आकृति के भीतर वृषभराशि की प्राकृति । पटना म्यूजियम के गोलखपुर सिक्कों पर भी यही चिह्न है। (३) हाथो, दाहने तरफ मुँहवाला या बाएँ तरफवाला, (४) एक पंचकोण सितारा जिसके कोनों में और केंद्र में बिंदु हैं या पूर्ववर्णित चक्र का आग (देखिए, चित्र ३ और ५. ए वर्ग के सिक्के)।।
प्रथम दो चिह्न सबमें एक से पाए जाते हैं, बाकी का हाल चित्रों के निरीक्षण से जान पड़ेगा। चौकोर सिक्के एक-दो कोनों पर कटे हुए हैं। दो सिक्कों की पुश्त पर कोई चिह्न अंकित नहीं है। बाकी आठ की पुश्त पर एक से चार चिह्न अंकित हैं। इसमें संदेह नहीं कि ये सिक्के पिछले सुडौल और सुंदर चिह्नोंवाले (Punck-marked ) सिक्कों की अपेक्षा पुराने हैं। ये गोलखपुर के सिकों के समान हैं पर उनसे कुछ छोटे हैं। ऊपर लिखे कारणों से यह अनुमान होता है कि ये मौर्यकाल के पूर्व के हैं। इन्हें ई० पू० पाँचवीं या छठी शताब्दी का अनुमान करना अनुचित न होगा। चित्र ३ और ५ में इन्हें ए वर्ग में रखा गया है।
उपसंहार चिह्नांकित मुद्राओं को तीन कालों में रख सकते हैं-(१) आरंभ के सिक्के-जब जुदे जुदे स्वतंत्र राज्य थे और सब अपने अपने अलग सिक्के चलाते थे, (२) मौर्य के पूर्वकालीन-जब नंद आदि के सिक्के चलते थे, (३) मौर्यकाल । कनिंघम साहब ने चिह्नांकित ( Punch-marked ) मुद्राओं का काल ई० पू० १००० तक
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