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चिह्नांकित मुद्राएँ
जे में पहाड़ - महराबों का हो गया । के ६३ सिक्कों का वर्णन पूरा हुआ ।
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इस प्रकार रावलपिंडी
तक्षशिला चिह्न
इन सब मुद्राओं की पीठ के चिह्नों का वर्णन न कर पूर्व वर्णित के विषय में कुछ विचार करेंगे । यह चिह्न केवल बी और आई वर्ग के सिक्कों पर ही मिला है ( देखिए, चित्र १ - २ - ५ ) | यह चिह्न आरंभ में कनिंघम साहब को तक्षशिला में मिले एक सोने के सिक्के पर मिला था जिसके एक ओर नंदी और दूसरी ओर यह आकृति थी । यही चिह्न बहुत से चाँदी के अंक - चिह्न युक्त (Punch-marked ) मुद्राओं पर भी मिला है जो भिन्न भिन्न दूर दूर के देशों में पाए गए थे, जैसे स्पूनर साहब को पेशावर में, वाल्श साहब को भागलपुर के गोरहोघाट में । उक्त बाबू साहब को भी ऐसे ही १८ सिक्के रावलपिंडी में मिले । ये सिक्के मद्रास, लखनऊ और कलकत्ता अजायबघरे में भी हैं
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क्या इसका यह अर्थ है। सकता है कि तक्षशिला के बने ये सब सिक्के भारतवर्ष में सब जगह फैले थे अथवा वे चंद्रगुप्त के राजांक से अंकित हैं उसमें दो अर्द्धचंद्र हैं। ये अंक उक्त बाबू साहब के पास उन्हीं सिक्कों पर हैं जिनकी बनावट में चाँदी और ताँबे का मिश्रण कौटिल्य के अनुसार है
बाबू साहब यह मानते हैं कि इसे चंद्रगुप्त का राजांक मानने के लिये अभी काफी प्रमाण नहीं हैं । दिल्ली, लखनऊ, बनारस, मथुरावाले सिक्के भिन्न वर्ग के हैं। सूर्य सब में है, पर चक्र सब में भिन्न भिन्न रूप से है ( देखिए, चित्र २ चिह्न एम-१, एम-२, एम-३ और एम-४ का ) । से बाकी का और सब भेद जान पड़ेगा ।
र ५ तथा दूसरा चित्रों के अध्ययन
इलाहाबाद, पटना, इंदौर, लाहोर और नागपुर से मिले सिक्के एन, ओ, पी, क्यू, और अक्षरों के खाने में बताए गए हैं। इनमें
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