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नागरीप्रचारिणी पत्रिका
चक्र यहाँ भी सी सिक्कों के समान हैं पर अब कुत्ता पहाड़ पर नहीं है और उसके आसपास ४ वृषभचिह्न हैं। चौथी आकृति एक सुंदर बोतल के आकार के ताड़ वृक्ष की है जिसमें फूल या फल लगे हुए हैं। पाँचवीं प्रकृति हाथी की है। इस मुद्रा की पीठ पर कई छोटी छोटी प्राकृतियाँ हैं ।
डी - १ चक्र में वृषभचिह्न वृत्त के भीतर है 1
इसकी पाँचवीं आकृति सी-१ की पाँचवीं प्रकृति के समान है । इन मुद्राओं में चाँदी का भाग ८०.५ और ताँबे का १८५ है तथा कुछ सीसे और लोहे की अशुद्धता भी है। धातु भंगुर या सहज ही टूटनेवाली है ।
इस मिश्रण की
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ई, ई-१, ई- २ वर्ग के ५ सिक्के दूसरे ही प्रकार के हैं ( देखिए, चित्र १ र ५ ) । सूर्य और चक्र पूर्ववत् ही हैं। तीसरी आकृति अब पृथ्वी की सतह पर खड़े कुत्ते की है। तीन महराबों से किसी फाटक का बोध होता है । पाँचवीं प्रकृति वेष्टन या चारा सहित वृक्ष की है। ई- १ में वह कोई जलीय पौधा बन जाती है और आगे जाकर दो लिपटे सर्पों की प्राकृति में परिणत हो जाती है । इन सब के पीछे दो छोटी छोटी आकृतियाँ हैं ।
इस वर्ग में धातुओं का मिश्रण सी वर्ग के समान है । चाँदी ७६६ भाग और ताँबा २० ४ भाग (कुछ अशुद्ध मिश्रण सहित ) |
एफ के चक्र की
एफ, जी, एच, आई, जे वर्ग के सिक्के ( चित्र २-५ देखिए ) भी रावलपिंडी में मिले थे । पर इनका विश्लेषण अभी तक नहीं हो सका है, क्योंकि ये अभी अकेले ही हैं । आकृति में वृषभचिह्न की जगह कोई दूसरा पशु है। आई और जे मुद्राओं में सूर्य भी नहीं है । दूसरे भेद चित्र से जान पड़ेंगे। भाई वर्ग की मुद्राओं की पीठ पर पूर्व - वर्णित तक्षशिला - चिह्न मंकित है }
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