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चिह्नांकित मुद्रा
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चित्र १ के सब चित्रों का अध्ययन करने से उनका पारस्परिक भेद जान पड़ेगा। बी-६ और सी चित्रों का मिलान करने से जान पड़ेगा कि बी वर्ग से सी वर्ग में परिणत होने के लिये बी-६ मध्यस्थ मुद्रा है। सूर्य और चक्र दोनों में एक से हैं। मेरु की प्राकृति में कुछ परिवर्तन हुआ है, पर सी में तीन के स्थान पर पाँच महराबें हैं और अर्द्धचंद्र कुछ चिपटा सा है । चौथी प्राकृति नंदी की है पर अब बैल का सिर (वृषभराशि चिह्न) नहीं रहा । पाँचवी आकृति हाथी की बार बार बदला करती है। इनकी पीठ के चिह्नों का अर्थ अभी तक समझा नहीं गया है ।
अब इससे आगे चित्र १ में सी वर्ग के सिक्कों का निरीक्षण किया जाय इस प्रकार के १८ सिक्के इस संग्रह में हैं । सूर्य पूर्ववत् है । चक्र में अब वृषभचिह्न परिधि के भीतर है । एक कुत्ता दुम उठाए हुए पाँच महराब के किसी पहाड़ पर कूदता सा दीख पड़ता है। चौथा नंदी है पर उसके सामने वृषभ राशि की प्राकृति अब नहीं है । छठा हाथी है । इन सब चिह्नों से युक्त केवल १० सिक्के हैं और उनकी पीठ पर २ से ६ तक चिह्न अंकित हैं । इन सी वर्ग की मुद्राओं के निरीक्षण से ज्ञात होगा कि हाथी के स्थान पर पाँच बार जुदी जुदी आकृतियाँ आ गई हैं और बाकी की ४ आकृतियाँ इस वर्ग में वैसी ही बनी हुई हैं ।
सी वर्ग के सिक्कों का विश्लेषण करने से ज्ञात हुआ कि इन सिक्कों में चाँदी, ताँबे और दूसरी निकृष्ट धातु के भाग कौटिल्य अर्थशास्त्र के अनुसार न होकर भिन्न हैं । चाँदी ७८-६ भाग, ताँबा और थोड़ा सीसा मिलाकर २० ४ भाग हैं। इससे जान पड़ता है कि ये सिक्के किसी और राजा के हैं और मौर्यवंश के पूर्व के हैं ।
डी और डी-१ वर्ग के सिक्के पाँच हैं। इनमें चिह्नों का और विशेष भेद हो गया है (देखिए, चित्र १ और ५) । सूर्य और
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