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२-६६
वर्षाο
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नागरीप्रचारिणी पत्रिका
ई० पू०
(४८६)
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(४८७)
(४८६)
(४८५)
(४८४)
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(४८३)
वैसाली ( वेलुवगाम )
इसके देखने से मालूम होता है कि सर्वप्रथम वर्षावास तथागत ने जेतवन में बोधि के चौदहवें वर्ष में किया था । इसका अर्थ यह भी है कि जेतवन बना भी इसी वर्ष ( ५१४ -५१३ ई० पु० ) में था, क्योंकि विनय का कहना साफ है कि अनाथपिंडिक ने वर्षावास के लिये निमंत्रित किया था और विनय के सामने अट्ठकथा का प्रमाण नहीं । यहाँ इस बात पर विचार करने के लिये कुछ और प्रमाणों पर विचार करना होगा ।
वर्षावास के लिये जेतवन नि 'त्रित होना ( पृष्ठ २५८ ), इसलिये जब जेतवन को पहले गए, तो वर्षावास भी वहीं किया ।
( क ) कौशांबी' में भिक्षुत्रों के कलह के बाद पारिलेयक में जाकर रहना, वहाँ से फिर जेतवन में ।
(ख) उदान में एकांत विहार के लिये पारिलेयक में जाना लिखा है, झगड़े का जिक्र नहीं ।
( १ ) "कोसबियं पिंडाय चरित्वा ... संघ मज्झे ठितकाव... गाथाय भासित्वा ...बालकले|णकारगामे..., श्रध... पाचीनवंसदाये...। श्रथ... पारिलेय्य के... यथाभिरत्तं विहरित्त्वा ... श्रनुपुब्वेन चारिकं चरमाना... सावस्थियं... जेतवने...।" - महावग्ग, कोसंब+खन्धक १०, ४०४ ४०८, पृष्ठ | ( २ ) भगवा को संबियं विहरति घोसितारामे । तेन खोपन समयेन भगवा आकिण्णो विहरति भिक्खुहि, भिक्खुनीहि उपासकेहि उपासिकाहि राजूहि
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