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________________ २-६६ वर्षाο ३६ ४० ४१ ४२ ४३ ४४ ४५ नागरीप्रचारिणी पत्रिका ई० पू० (४८६) (४८८) (४८७) (४८६) (४८५) (४८४) ... ... ... 467 ... (४८३) वैसाली ( वेलुवगाम ) इसके देखने से मालूम होता है कि सर्वप्रथम वर्षावास तथागत ने जेतवन में बोधि के चौदहवें वर्ष में किया था । इसका अर्थ यह भी है कि जेतवन बना भी इसी वर्ष ( ५१४ -५१३ ई० पु० ) में था, क्योंकि विनय का कहना साफ है कि अनाथपिंडिक ने वर्षावास के लिये निमंत्रित किया था और विनय के सामने अट्ठकथा का प्रमाण नहीं । यहाँ इस बात पर विचार करने के लिये कुछ और प्रमाणों पर विचार करना होगा । वर्षावास के लिये जेतवन नि 'त्रित होना ( पृष्ठ २५८ ), इसलिये जब जेतवन को पहले गए, तो वर्षावास भी वहीं किया । ( क ) कौशांबी' में भिक्षुत्रों के कलह के बाद पारिलेयक में जाकर रहना, वहाँ से फिर जेतवन में । (ख) उदान में एकांत विहार के लिये पारिलेयक में जाना लिखा है, झगड़े का जिक्र नहीं । ( १ ) "कोसबियं पिंडाय चरित्वा ... संघ मज्झे ठितकाव... गाथाय भासित्वा ...बालकले|णकारगामे..., श्रध... पाचीनवंसदाये...। श्रथ... पारिलेय्य के... यथाभिरत्तं विहरित्त्वा ... श्रनुपुब्वेन चारिकं चरमाना... सावस्थियं... जेतवने...।" - महावग्ग, कोसंब+खन्धक १०, ४०४ ४०८, पृष्ठ | ( २ ) भगवा को संबियं विहरति घोसितारामे । तेन खोपन समयेन भगवा आकिण्णो विहरति भिक्खुहि, भिक्खुनीहि उपासकेहि उपासिकाहि राजूहि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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