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________________ (६) जेतवन [ लेखक-श्री राहुल सांकृत्यायन, ग्यात्सी ] जेतवन श्रावस्तो से दक्षिण तरफ था; चीनी भितुमों के अनुसार यह प्राय: एक मील ( ५, ६, ७ ली ) के फासले पर था। पुरातत्त्व-विषयक खोजों से निश्चित ही हो चुका है कि महेट से दचिण सहेट ही जेतवन है। चीनी यात्रियों के ग्रंथों में हम इसका दर्वाजा पूर्व मुँह देखते हैं। जेतवन की खुदाई में जो दो प्रधान इमारतें निकली हैं, जिन्हें गंधकुटी और कोसंबकुटो से मिलाया गया है, उनका भी द्वार पूर्व को ही है, जो इस बात की सातो हैं कि मुख्य द्वार पूर्व तरफ था। नगर से दक्षिण होने पर भी प्रधान दर्वाजा उत्तर मुँह न होकर पूर्व मुंह था, इसका कारण यहो था कि श्रावस्ती का दक्षिण द्वार वहाँ से पूर्व तरफ पड़ता था। जेतवन बौद्धधर्म के अत्यंत पवित्र स्थानों में से है। यद्यपि त्रिपिटक के अत्यंत पुरातन भाग दोघनिकाय ( महापरि. निब्बानसुत्त ) में जो चार अत्यंत पवित्र स्थान गिनाए गए हैं, उनमें इसका नाम नहीं है. तो भी दीघनिकाय की अट्ठकथा (1) चत्तारिमानि अानंद ! सद्धस्सकुलपुत्तस्स दस्सनीयानि....नानि... इध तथागतो जातोति,...इध तथागतो अनुत्तरं सम्मासम्बोधिं अभिसम्बुद्धोति, ...इध तथागतेन अनुत्तरं धम्मचकं पवत्तितन्ति,...इध तथागतो अनुपादिसेसाय निब्बाणधातुया परिविब्बुतोति...।-महा० परि० सुत्त, १६ । (२) चत्तारि अविजहितहानावि... बोधिपल्लङ्को...। धम्मचक्कप्पवत्तनट्रानं इसिपतने मिगदाये...। देवोरोहणकाले संकस्सनगरद्वारे पठमपदगण्ठि...। जेतवने गंधकुटिया चत्तारि मञ्चपादट्ठानानि अविजहितानेव होन्ति ।...विहा. रोपि न विजहति येव... । इदानि नगरं उत्तरता विहारो दक्खिणतो...। -दी. नि०, महापदानसुत्त, १४; अ. क. २८२ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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