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(८) हुमायूँ के विरुद्ध षड्यंत्र [ लेखक-श्री रामशंकर अवस्थी, बी० ए०, प्रयाग] हुमायूँ के विरुद्ध पड्यंत्र था या नहीं, इस प्रश्न पर प्राचीन इतिहासज्ञों में मतभेद है। ऐसा होना स्वाभाविक ही है जब हुमायूँ के समकालीन तथा उसकी मृत्यु के चालीस वर्ष बाद के इतिहासकारों में ही तीन मत हैं-(१) सम्राट ने हुमायूं को इस कारण बुला भेजा कि यदि उसकी कहों मृत्यु ही हो जाय तो कम से कम एक उत्तराधिकारी तो निकट होगा; (२) हुमायूँ ने (बदख्शा से) अपने पिता के दर्शन की उत्कट लालसा से प्रेरित हो प्रस्थान किया; (३)
आगरा में हुमायूँ को सिंहासन-च्युत करने के लिये एक षड्यंत्र का निर्माण किया गया था तथा प्रधान षड्यंत्रकार मीर खलीफा ने अपने प्रयत्नों को असफल होते देखकर उल्टे हुमायूँ को ही बुला भेजा। अब हम इस विषय पर प्राप्य सामग्री का विश्लेषण कर इन तीनों मतों की वास्तविकता पर विचार करेंगे।
पहले मत का प्रतिपादक स्वयं हुमायूं का चचेरा भाई मिरजा हैदर दोगलात है। उसका कथन है-“वर्ष ६३५ हि० में बाबर बादशाह ने हुमायूं मिरजा को वापस बुला भेजा.........। उसने उसे बुला भेजा ताकि उसकी एकाएक मृत्यु के समय कोई उत्तराधिकारी तो निकट मिल जावे।" परंतु इस मत की वास्तविकता का प्रश्न उठाने के पूर्व यह सूचित कर देना अत्यावश्यक है कि हुमायूँ के आगरा चले पाने के बाद मिरजा हैदर ने बदख्शा आ घेरा था ।
(१) तारीखे-रशीदी-लेखक मिरजा हैदर दोगलात, अनुवादक ई ऐडरास, पृष्ठ ३८७ ।
(२) वही, पृष्ठ ३८८ ।
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