________________
पद्माकर के काव्य की कुछ विशेषताएँ एक भाग बहुत ही उज्ज्वल एवं उत्कृष्ट है । उनकी भाषा बहुरूपिणी है। भावानुरूप वह सरल, तरल तथा मुहावरेदार हुई है उनके काव्यों में भाषा की जैसी अनेकरूपता देखी जाती है वैसी हिंदी के तुलसी, अँगरेजी के टेनिसन आदि कुछ अत्यंत उत्कृष्ट कवियों में ही पाई जा सकती है। उनके भावों में यद्यपि आजकल के विचारानुसार अधिक गंभीरता नहीं पाई जा सकती किंतु वह जैसी भी है, बहुत सुंदर रूप में विकसित हुई है। भारतीय साहित्यशास्त्र के आदर्शानुसार यद्यपि पद्माकरजी को महाकवियों की श्रेणी में बैठाना भी कठिन होगा किंतु उनकी कुछ सूक्तियाँ इतनी श्रेष्ठ हुई हैं जो संसार के प्रतिष्ठित कवियों की अच्छी रचनाओं के समकक्ष निःसंकोच रखी जा सकती हैं। उनमें से कुछ तो इतनी उज्ज्वल हुई हैं जिनसे हिंदी-साहित्य का मस्तक ऊँचा हुआ है। पद्माकरजी अपनी परिपाटी के बहुत श्रेष्ठ कवि हो गए हैं और तदनुकूल संसार में उनकी प्रतिष्ठा भी यथेष्ट हुई है।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com