SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 8
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३६४ नागरीप्रचारिणी पत्रिका वकील को बादशाह के पास भेजकर कहलाया कि रत्नसेन आज तुम्हें पद्मिनी सौंपता है। सुलतान यह बात सुन बड़ा ही प्रसन्न हुआ, उसने बादल को कहलाया कि पद्मिनी शीघ्र ही लाई जाय। सुलतान के ये वचन सुनकर बादल डोलियों के समीप आया और अपने वीरों को कहने लगा कि ज्योंही मैं कहूँ, त्योंही भाला हाथ में लेकर शत्रुओं पर टूट पड़ना। भाला टूट जाने पर गुरज और गुरज के टूट जाने पर कटार का वार करना । ___ जब अल्पवयस्क बादल लड़ने को चला तो उसकी माता ने आकर कहा कि हे पुत्र! तूने यह क्या किया। तू ही मेरा जीवन है, तेरे बिना संसार मेरे लिये अंधकार है और सब कुछ सूना तथा नीरस है। तेरे बिना मुझको कुछ नहीं सूझता। मेरे गात्र टूटते हैं, छाती फटती है, जहाँ कठोर तोर बरसते हैं वहाँ तू आगे बढ़कर शाह की सेना से कैसे लड़ेगा ? बादल ने अपनी माता को कहा-- "हे माता ! तू मुझे बालक क्यों कहती है ? बादशाह के सिर पर तलवार का प्रहार करूं तो मुझे शाबाश कहना। सिंह, बाज पक्षी और वीर पुरुष कभी छोटे नहीं कहलाते। मेरी प्रतिज्ञा है कि मैं आगे बढ़कर खूब युद्ध करूँगा। स्वामी के लिये अनेक योद्धाओं को मारूँगा, हाथियों को गिराकर, बख्तरों को तोड़, तलवार चलाता हुआ बादशाह को मारूँगा। यदि मर गया तो जगत् में मेरा यश होगा और युद्धस्थल से मुँह मोड़कर मैं तुझे कभी न लजाऊँगा।” बादल की माता उसकी प्रतिज्ञा की प्रशंसा कर 'तेरी जय हो' यह आशिष देती हुई लौट गई। फिर उस ( माता) ने बादल की स्त्री के पास जाकर कहा कि तेरा पति मेरे समझाए तो समझता नहीं, अब तू जाकर उसको रोक । उसकी नवोढ़ा स्त्री ने उससे कहा कि हे पति ! अभी तो आपने शय्या का सुख भी नहीं भोगा। जहाँ साँगों के प्रहार होते हैं, निरंतर तोपों से गोले चलते हैं और सिर टूट टूटकर धड़ों Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034973
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar Hirashankar Oza
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1933
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy