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प्रेमरंग तथा आभासरामायण
४२६ देखे हैं बड़े भयानक प्रभु लछमन को सौंप थानक* । मारे हैं सभी सहज में जमराज पुरी देखाई ॥१६॥ राकसू को मारे सुनकर खर चौदहो हजार लेकर। ल्याया दूखन वगेरे त्रिशिरा, रघुबर से मराया ॥१७॥ खर एक देख रथ पर कहि दो-चार बात सखती । लड़ भिड़ को थका जाना सर बेधि सिर गिराया ॥१८॥ सुर मुन ने सुना नहाए तज रनभूम कुटी में आए । बन ब्राह्मन अभय पाए हँस सियाराम गरे लगाया ॥१६॥ एक सुर्पनखी अकंपन डर दौड़ गई है लंका । सीता को हरन बताया मारीच मदत ठराया ॥२०॥ मारीच डरा डराया बल रघुनाथ का सुनाया। जंजाल घेर ल्याया जनस्थान हरिन चराया ॥२१॥ सिय देख फूल चुनते अजब सुवर्न हरन चुगते । मन नैन हरे हरिन ने रघुबीर को दौड़ाया ॥२२॥ भरमे हैं दूर जाकर लगी सर बेध गिरा निशाचर । मरतेइ कहा हो लछमन सिय प्राण डराया ॥२३॥
आतेहि अवाज लछमन सिय बरजोर पठाया। रावन ने सियाहरन कर खगराज कटाया ॥२४॥ पर काट चला गगन से सिय रोती हि डाल गहना। धर अंक लंक पहुँचा सुरबर खीर खिलाया ॥२॥ मारीच मार फिरते खग-मृग बाएँ भौंर करते । लछमन को देख डरते कहा सिया को कहाँ गँवाई ॥२६॥ कुटिया को देखि खाली फल गुल बेल फूल पूछे। बेकरार बेहाल बेबस ढूँढे हैं कहीं न पाई ॥२७॥
* 'थानक' यह शब्द एक प्रति में छूट गया है।
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