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________________ ४२८ नागरीप्रचारिणी पत्रिका एतने में दौड़ आकर निशिचर ले चला सिय को। लछमन के कहे झपटे छोड़ाया है दपट से ॥ ४ ॥ सीने में बेध पाय कर रख सीय ले चला दुहुँन को। सीता को देख रोते कर तोड़े हैं चटक से ॥५॥ बिराध मैं अमर हो नहिं मरता हों किसी से । रघुनाथ जो तुम्ही हो गाड़ोगे पटक से ॥६॥ गड़हे मो गाड़ निशिचर आगे को चले हैं बन में। शरभंग राम रंग हुए जल खाक झटक* सें ॥७॥ मिल मिल को मुनि आए रघुबर-रूपगुण लोभाए। भय पाय अभय माँगे रावन के कटक सें ॥८॥ यमराजदिक् में सुनते मुनिवर अगस्त कहाँ रहते। दश साल यों गुजर कर सुतीक्ष्ण राह बताए ॥६॥ पहुँचे हैं दरस परस कर मुनिवर पास रहैं रघुबर। शमशेर कमान अछै शर अपनी अमान पाई ॥१०॥ रहना है हमैं बरसों कोई खुश ठौर हुक्म कीजे। तप ज्ञान जान प्रभुको जनस्थान बास बताई ॥११॥ जटायु प्राय मिलकर कर कुटिया में रहे कोइ दिन । गुलबहार निहार सरोवर जल्दीहि नहाए भाई॥१२॥ एक बेर कहें शुगल में वहाँ सूपनखी आई। भोड़ी सी सकल निगोड़ी सुंदर सरूप लोभाई ॥१३॥ दो चार दफे दौड़ाई ब्याह करने को दोनों भाई। हँस सुजान कान काटे हो नकटी वहाँ से धाई ॥१४॥ रघुनाथ सरूप कहे ते नाकों में खून बहते । चौदह चलाए खर ने निशिचर चढ़ाइ ल्याई ॥१५॥ * चटक । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034973
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar Hirashankar Oza
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1933
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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