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________________ प्रेमरंग तथा आभासरामायण ४१३ कथानुसार रामचरित वर्णित है। यह आभासरामायण से कुछ बड़ा ग्रंथ है। गुजराती स्त्रियों में गाने की एक प्रथा को गरबा कहते हैं। कजली के गाने के समान कुछ स्त्रियाँ मंडलाकार खड़ी हो जाती हैं और गाती हुई घूमती जाती हैं। दोनों में एक विभिन्नता है कि कजली में स्त्रियाँ भीतरी ओर मुख किए रहती हैं पर गरबा में बाहरी ओर। उसी प्रकार के गीत गाने का यह संग्रह होने से इसका गरबावली नामकरण किया गया है। ___यह ग्रंथ गुजराती भाषा में है इससे विशेष उदाहरण न देकर दो-चार पद उद्धृत कर दिए जाते हैं। इसके विषय में विशेष लिखना भी अपने सामर्थ्य के बाहर ही है। इसमें एक स्थान पर एक श्लोक दिया गया है जो स्थानादि के विचार से इन्हीं कवि की रचना ज्ञात होती है, इसलिये वह भी यहाँ उद्धृत कर दिया जाता है। हो सकता है कि यह किसी अन्य की रचना हो। धन्यायोध्या दशरथनृप: सा च धन्या... धन्यो वंशो रघुकुलभवो यत्र रामावतारः। धन्या वाणी कविवरमुखे रामनामप्रपन्ना _धन्यो लोकः प्रतिदिनमसौ रामवृत्तं शृणोतु॥ प्रभु पंपा तीरे जोय । कमल जलचर दीठा ॥ करे कोकिल गायन लोय । गलां रमणिय मीठां ॥ त्याहाँ कै कै फल ना झाड। फूलनी बेल घणी ॥ एव्हे आव्यो फागुण पाड । पाड़ा विरह तणी॥ मुन्हे रत्य पीडे छे बसंत । कामिनि पाशिविना ॥ गाए भमरा भमि भमि संत । सुगंध पवन भीना । पदावली-इस संग्रह की हस्त-लिखित प्रति सं० १८८६ वि० की लिखी हुई है। यह छोटे छोटे २७८ पत्रों की रेशमी जिल्द बँधी हुई पुस्तक है जिसके प्रत्येक पत्रे के दोनों ओर पाँच पाँच पंक्तियाँ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034973
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar Hirashankar Oza
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1933
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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