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________________ ४१२ नागरीप्रचारिणी पत्रिका संस्कृत, प्राकृत दोउ कहे इंद्रप्रस्थ के बोल । वाल्मीकीय प्रसाद सों गाए राग निचोल ॥ खड़ी बोली भाषा के विषय में इनका यह कथन कि वह इंद्रप्रस्थ (दिल्ली) की बोली है, महत्त्वपूर्ण है। आज से १३० वर्ष पहले भी खड़ी बोली हिंदी दिल्ली के आसपास की भाषा मानी जाती थी। कुछ ‘एकैडेमिशियनों' का यह कथन कि खड़ी बोली हिंदी अर्थात् हिंदुस्ताना भाषा को डा० गिलक्राइस्ट की तत्त्वावधानता में फोर्ट विलियम कालेज के पंडितों तथा मुंशियों ने जन्म दिया है, बिलकुल असंगत तथा सारहीन है। उसी प्रकार ब्रज भाषा से उर्दू का जन्म मानना तथा उर्दू में से फारसी अरबी शब्दों को निकालकर संस्कृत शब्दों को भर खड़ी बोली बनाने का कथन निरर्थक ज्ञात होता है। अस्तु, समग्र ग्रंथ में गाने के छंदों ही का प्रयोग है और प्रत्येक कांड के लिये भिन्न भिन्न छंद प्रयुक्त हुए हैं। अंत में बारह दोहों में फलस्तुति तथा रचना-काल दिया गया है। इस ग्रंथ की समाप्ति विक्रम संवत् १८५८ के अधिक ज्येष्ठ कृष्ण ११ को हुई थी। इस ग्रंथ के उदाहरण देने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह ग्रंथ पूरा इस लेख के साथ प्रकाशित कर दिया जाता है। गरबावली-इस ग्रंथ की जो हस्त-लिखित प्रति मेरे सामने है वह खंडित हो गई थी पर किसी सज्जन ने अन्य प्रति से उसे पूरा कर दिया है। यह चौहत्तर पत्रों में समाप्त हुई है। साढ़े नौ इंच लंबे तथा सवा चार इंच चौड़े पत्रों पर छः छः पंक्तियों में यह ग्रंथ लिखा गया है। कागज भी अच्छा है और अक्षर भी सुंदर तथा सुडौल हैं। इस प्रति का लिपि-काल नहीं दिया है पर यह प्राचीन अवश्य है। यह ग्रंथ गुजराती भाषा में आभासरामायण के ढंग पर लिखा गया है। इसमें भी बालकांड से उत्तरकांड तक सातों कांड भिन्न भिन्न गाने योग्य छंदों में रचे गए हैं और वाल्मीकीय Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034973
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar Hirashankar Oza
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1933
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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