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________________ ४०६ नागरीप्रचारिणी पत्रिका मारवाड़ या मेवाड़ में, जहाँ से इन गोहिलों का निकास बतलाया जाता है, रहा हो ऐसा कोई प्रमाण अभी तक उपलब्ध नहीं हुआ है और दूसरी बात यह है कि प्रतिष्ठान का शालिवाहन चंद्रवंशी न होकर आंध्रवंशी था और संभवत: द्रविड़ जाति का था। उस राजवंश का लोप तो प्राय: विक्रम की तीसरी शताब्दी के ही लगभग हो चुका था जब कि इन वर्तमान राजपूत कुलों के अस्तित्व का भी कोई चिह्न नहीं था। हमारा तो अनुमान यह होता है कि अणहिलपुर के चालुक्यचक्रवर्ती सिद्धराज जयसिंह के समय में इन काठियावाड़ के गोहिलों का मेवाड़ से इधर आना हुआ होगा। सिद्धराज ने मालवे के परमार राजा यशोवर्मा को पराजित कर वहाँ पर अपनी प्राण बरताई उस समय मेवाड़ का राज्य भी, जो मालवेवालों के अधीन था, गुजरात के छत्र के नीचे आया। उसी समय मेवाड़ के राजवंश का कोई व्यक्ति नियमानुसार गूजरेश्वर की सेवा में उपस्थित हुआ होगा, जो मांगरोलवाले संवत् १२०२ के लेख में सूचित किया गया है। इस लेख से मालूम होता है कि गुहिलवंशीय साहार का पुत्र सहजिग सिद्धराज की सेवा में उपस्थित हुआ था जिसके कुल आदि का महत्त्व समझकर सिद्धराज ने उसे अपना अंगरक्षक बनाया था। बाद में उसके पुत्र को सौराष्ट्र का अधिकारी नियुक्त किया जो कुमारपाल के समय में भी उसी पद पर बना रहा और पीछे के सोलंकी राजाओं के समय में भी उनकी संतान इस प्रकार अधिकारारूढ़ बनी रही और शनैः शनैः समय पाकर उन्होंने स्वतंत्र बनकर इन काठियावाड़ के गोहिल राज्यों की नींव डाली। गुजरात में हिंदू राजसत्ता का नाश होने पर और मुसलमानी सत्ता के कायम होने पर इस देश के राजपूत घरानों की बड़ी दुर्दशा हुई। इनके लिये न कोई आधारभूत राजकुल था और न Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034973
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar Hirashankar Oza
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1933
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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