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(१३) काठियावाड़ श्रादि के गोहिल
[लेखक-श्री मुनि जिनविजय, विश्वभारती, बोलपुरः] श्रीमान् रायबहादुर महामहोपाध्याय पंडितप्रवर श्री गौरीशंकर हीराचंदजी ओझा ने अपने राजपूताने के इतिहास के चौथे खंड में उदयपुर राज्य का इतिहास लिखते समय राजपूताने से बाहर के गुहिलवंशी राजपूतों का भी कुछ परिचय दिया है। उसमें 'काठियावाड़ आदि के गोहिल' नामक शीर्षक के नीचे काठियावाड़ के भावनगर और पालीताणा आदि राज्यों का, जो गोहिलवंशी राजकुलों के अधीन हैं, वर्णन करते हुए उनके राजाओं का भी मेवाड़ की शाखा में होना बतलाकर उन्हें सूर्यवंशी प्रमाणित किया है और भावनगर, पालीताणा आदि राजकुलों को आधुनिक इतिहास-लेखक, जो भाटों
आदि की कल्पनाओं पर चंद्रवंशी बतलाते हैं, अनैतिहासिक साबित किया है। __ हमने म० म० पं० श्री गौराशंकरजी ओझा के लिखे हुए उक्त प्रकरण को खूब विचार-पूर्वक पढ़ा है और उसके पूर्वापर संबंध का ठीक ठीक विचार किया है। ओझाजी का लेख पढ़ने के पहले भी हमारा स्वतंत्र अभिप्राय, जो हमने अपने ऐतिहासिक अध्ययन के परिणाम में स्थिर किया था, यही था कि काठियावाड़ के गोहिल राजपूत उसी प्रसिद्ध राजवंश की संतान हैं, जो आज करीब १३ सौ वर्ष से मेवाड़ की पुण्य भूमि का रक्षण कर रहा है। काठियावाड़ के गोहिलों के चंद्रवंशी होने का कोई भी प्राचीन उल्लेख अभी तक हमारे देखने में नहीं आया। प्रतिष्ठानपुर के जिस शालिवाहन राजा के साथ इनके पूर्वजों का संबंध बतलाया जाता है वह केवल कपोल-कल्पित ही है। प्रतिष्ठानपुर के शालिवाहन का राज्य कभी
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