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हिंदी की गद्य-शैली का विकास २०३ इस प्रकार व्यापक रूप में न सही, पर संतोषप्रद रूप में प्रयास किया जा रहा था। इसी समय सरकार ने भी मदरसे स्थापित करने का आयोजन प्रारंभ किया। नगरों के अतिरिक्त गाँवों में भी पढ़ाने लिखाने की व्यवस्था होने लगी। इन सरकारी मदरसों में अँगरेजी के साथ साथ हिंदी उर्दू को भी स्थान प्राप्त हुआ। यह आरंभ में ही लिखा जा चुका है कि जिस समय मुसलमान लेखको ने कुछ लिखना प्रारंभ किया उस समय ब्रजभाषा और प्रवधी में ही उन लोगों ने अपने अपने काव्यों का प्रणयन किया। इसके बाद कुछ लोगों ने खड़ो बोलो में रचनाएँ प्रारंभ की। पहले किसी में भी यह धारणा न थी कि इसी हिंदी के ढाँचे में अरबी फारसी की शब्दावली का सम्मिश्रण कर एक नवीन कामचलाऊ भाषा का निर्माण कर ले। परंतु आगे चलकर अरबी फारसी के शब्दों का प्रयोग खड़ी बोली में क्रमशः वृद्धि पाने लगा। शब्दों के अतिरिक्त मुहावरे, भावव्यंजना तथा वाक्थ-रचना का ढंग भी धीरे धीरे बदल गया। खड़ो बोली के इसी बदन्ने हुए रूप को मुसलमान लोगों ने उर्दू के नाम से प्रतिष्ठित किया। ये लोग कहने लगे कि इस भाषा विशेष का अपना स्वतंत्र अस्तित्व है।
पहले अदालतों में विशुद्ध फारसी भाषा का प्रयोग होता था। पश्चात् सरकार की कृपा से खड़ो बोली का अरबो
__ फारसीमय रूप लिखने पढ़ने की प्रदालती ___ उर्दू की व्यापकता :
" भाषाहोकर सबके सामने आया" । वास्त. विक खड़ी बोली की प्रगति को इस परिवर्तन से बड़ा व्याघात पहुँचा। अदालत के कार्यकर्ताओं के लिये इस नवाविष्कृत गढ़त
यापकता
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