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________________ इस प्रकार के भाव मन में रखकर यदि मंत्रो का जाप किया जाये; तो पुण्य सहायक होता है, अन्तराय कर्मों का जोर कम होता र है और अपना पुरूषार्थ भी सफल होता है। ." . .. . " (TAI '. सिध्दि प्रदायक यंत्र जिस प्रकार कोई भी वर्ण अथवा वर्णसमूह शक्तिसंपन्न हैं; उसी प्रकार संख्यावाचक अंक भी प्रकारान्तर से शक्तिसंपन्न में हैं। मंत्र दो प्रकार के होते हैं - मारक और तारक। मारक मंत्र हिंसक और व्देष भाव से परिपूर्ण होते हैं। मारक मंत्रो की साधना में देवी देवताओं के आगे निरपराध मूक प्राणियों का वध होता है। ऐसे तात्रिक प्रयोगो के व्दारा शत्रुनाश, मारण, उच्चाटन, पीडन आदि कार्य साध्य किये जाते हैं, इसलिए दयालु, पापभीरू और धर्माराधक आत्मसाधक को ऐसे मंत्रों की साधना नहीं करनी चाहिये। अन्न-वस्त्र की उपलब्धि या अनुपलब्धि पूर्वोपार्जित पुण्य-पांप का फल है और लाख प्रयत्न करने पर भी भाग्य नहीं बदला जा सकता; अतः देवदुर्लभ मनुष्य जन्म पा कर ऐसे मंत्र-तंत्रों का त्याग करना ही उचित है। । कुछ अपवाद छोडकर संख्या की जिस रचना में चारों ओर से एकही जोड आवे; उसे यंत्र कहते हैं। जैन धर्म सम्मत ऐसे बहुत से यंत्र हैं; जो साधक को उत्तम फल प्रदान कर सकते हैं। १) इन यंत्रों में प्रमुख यंत्र है - श्री सिध्दचक्र यंत्र। यह श्रेष्ठतम यंत्र है। इसमें अरिहंत, सिध्द, आचार्य, उपाध्याय, साधु, दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप इन नौ पदों का आलेखन .. v श्रीमुनिसुव्रत स्वामी चरित ७१ anaswami Gvanbhandar-mata. Surat www.umaragvánbridtear.co
SR No.034967
Book TitleMunisuvrat Swami Charit evam Thana Tirth Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnanandvijay
PublisherRushabhdevji Maharaj Jain Dharm Temple and Gnati Trust
Publication Year1989
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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