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________________ के राजा महाकाल की पुत्री मदनसेना के साथ उनका विवाह हुआ । इसी प्रकार रत्नसंचया नगरी के राजा कनकध्वज की पुत्री मदन मंजूषा के साथ भी उनका विवाह हुआ। अब श्रीपाल आगे बढे । मदनसेना और मदन मंजूषा उनके साथ थी । धवलेसठ तो साथ में था ही । श्रीपाल का वैभव देखकर वह मन ही मन जल रहा था । उसके मन में पाप विचारों का प्रादुर्भाव होने लगा । श्रीपाल की दोनों ! पत्नियों पर वह आसक्त हो गया। उन्हें पाने के विचार में उसकी नींद हराम हो गयी । जहाज समुद्र में आगे बढ़ रहा था । धवल सेठ के मन में श्रीपाल की हत्या करने के विचार आने लगे । अन्त में उसने अपने मुनीम की सलाह ली और उसकी सहायता से उन्होंने श्रीपाल को समुद्र में गिरा दिया। श्रीपाल का पुण्य बलवान था, इसलिए वह समुद्र में एक मगरमच्छ की पीठ पर गिरा । वह मगरमच्छ उन्हें ले कर आगे बढ़ गया। किनारा आने पर श्रीपाल वहाँ कूद पडे। पर थकान के कारण वे चंपा के पेड़ के नीचे बेहोश हो कर गिर पड़े। थोडी देर बाद जब उन्हें होश आया, तो उन्हें एक सैनिक दिखाई दिया। उसने कहा- 'हे भद्र । यह कोकण प्रदेश की राजधानी थाना नगरी है। यहाँ के राजा वसुपाल ने आपको सादर आमंत्रित किया है; इसलिए हम आपको लेने आये है ।' श्रीपाल यह सब सुनकर चकित रह गये और वे उसके साथ राजमहल में चले गये । राजाने उनका हार्दिक स्वागत किया। उनके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर वसुपाल ने उन्हें थाना का राज्य सौंप दिया । [आगे का हाल जानने के लिए 'श्रीपाल चरित्र' या 'श्रीपाल राजा का रास' पढ़िये । नवपदजी की ओली के दिनों में 'श्रीपाल राजा का रास' श्रद्धापूर्वक पढ़ा जाता है और जैन श्रीसंघ में यह अत्यन्त लोकप्रिय है । ] Shree Sudharaswami श्रीमुनिसुव्रत स्वामी चरित ६४ Umara, Surat maragdnbhandar.com
SR No.034967
Book TitleMunisuvrat Swami Charit evam Thana Tirth Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnanandvijay
PublisherRushabhdevji Maharaj Jain Dharm Temple and Gnati Trust
Publication Year1989
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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