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श्रीपाल महाराज की सिद्धचक्र आराधना
श्रीपाल राजपुत्र थे। चंपा नरेश सिंहरथ उनके पिता थे। उनकी माता का नाम कमलप्रभा था। पूर्वोपार्जित पुण्य के कारण वे . रूप-गुण संपन्न थे और राजवंश में उनका जन्म हुआ था। बड़े
लाड़-प्यार में वे पल रहे थे; पर पुण्योदय सदा स्थायी नहीं रहता। सुख के बाद दुःख और दुःख के बाद सुख, यह क्रम हमेशा चलता रहता है।
उनका पापोदय हुआ और उनके पिता का छत्र उनके सिर से हट गया। उनके पिता अचानक चल बसे। उस समय वे केवल दो साल के थे; अतः उनके चाचा अजितसेन राजकाज चलाने लगे। धीरे-धीरे उनके मन में राज्य लोभ जाग गया और उन्होंने छल-कपट से राज्य हडप कर लिया। रानी कमलप्रभा को राज्य छोडकर भाग जाना पडा। राजकुमार श्रीपाल उसके साथ था।
श्रीपाल को साथ ले कर वह एक घने जंगल में पहुँच गयी। वहाँ एक पेड़ के नीचे उसने रात बितायी। सुबह होने पर रानी आगे बढ़ी। अचानक उसे कुछ सिपाही उसका पीछे करते हुए दिखाई दिये। वे अजितसेन के सिपाही थे और श्रीपाल को पकड़ना चाहते थे।
रानी वहाँ से भाग निकली। कुछ दूर जाने पर उसे एक कोढ रोगियों का समूह दिखाई दिया। सैनिक अभी भी उसका पीछा कर रहे थे। श्रीपाल को बचाने के लिए उसने उनके नेता से प्रार्थना की। नेता को उस पर दया आ गयी और उसने माँ-बेटे को छिपा लिया।
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श्रीमुनिसुव्रत स्वामी चरित ६० Shree Sudharhraswamyaroratidar-Trara, Surat
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