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संबंध स्थापित करने से प्रचुर परिणाम में कर्मों का क्षय हो जाता है।
जन्मकुंडली में क्रूर स्वभावी शनि ग्रह जब बिगड़ जाता है; तो वह कभी कभी जीवन भर सताता है और कभी मर्यादित समय तक। इस स्थिति में श्रीमुनिसुव्रत स्वामी की आराधना ही डूबती हुई जीवन नैया को बचा सकती है। उनकी आराधना जो कोई करता है तथा शनिवार के दिन आयंबिल, एकासना या बेआसणा करता है; वह अपने जीवन में अवश्य सुखी होता है।
यही कारण है कि थाना के जिनालय में श्रीमुनिसुव्रत स्वामी भगवान की रमणीय प्रतिमा बिराजमान की गयी है। यह भी सत्य है कि इस मंदिर की प्रतिष्ठा के बाद थाना श्रीसंघ की आबादी बढ़ी है
और श्रीसंघ का विकास हुआ है। साधु-साध्वियों के चार्तुमास लगातार होते रहे हैं और अनेक धार्मिक अनुष्ठान भी संपन्न हुए हैं। थाना श्रीसंघ विकास की ओर गतिमान है।
महावीर वाणी धम्मो मंगलमुक्किठें अहिंसा संजमो तवो! देवा वि तं नमसति जस्स धम्मे सया मणो।।
धर्म उत्कृष्ट मंगल है। अहिंसा, संयम और तप इसके लक्षण है। जिसका मन हमेशा धर्म में रमता है, उसे देव भी नमस्कार करते है।
सुवण्णरुप्पस्स उ पव्वया भवे, सिया हु केलासमया असंखया। नरस्स लुध्दस्स न तेहि किंचि, इच्छा हुमागाससमा अणन्तिया।।
यदि सोने और चांदी के असंख्य पर्वत उत्पन्न हो जाये, तो भी लोभी पुरुष को इससे कोई असर नहीं होती (तृप्ति नहीं होती) क्यों कि इच्छा आकाश के समान अनंत है।
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श्रीमुनिसुव्रत स्वामी चरित ५९ Shree Sudharmaswami Gyanphandar-umara, surat www.umaragyanbhandar.com