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________________ किया। कई सेठ साहूकार उस यज्ञ में सम्मिलित हुए थे। सागरदत्त भी वहाँ समय पर पहुँच गया था। होम हवन प्रारंभ हुआ। आहुति के लिए वहाँ घी के घडे विद्यमान थे। उन पर हजारों चींटियाँ लग गयी थीं। यह देख कर पुजारी ने उन घडों को कपड़े से रगड रगडकर साफ कर दिया। सब चींटियाँ बेमौत मर गयीं। अहिंसा धर्म के ज्ञान के अभाव में सब काम निर्दयता पूर्वक होते हैं। सागरदत्त ने इस प्रकार चींटियों को मरते हुए देखा, तो उसे अच्छा नहीं लगा। उसने पुजारी को फटकारते हुए कहा - 'काम कोई भी हो, धार्मिक हो या घरेलू, उसे विवेवकपूर्वक करना चाहिये। भगवान के मंदिर में तो किसी भी प्रकार की हिंसा होनी ही नहीं चाहिये। देखो, घडों को साफ करते वक्त तुमने कितनी चीटियाँ मार डालीं। यह अच्छी बात नहीं है।' सेठ की बात का पुजारी पर कोई असर नहीं हुआ। उसने कहा - 'पाप-पुण्य के अपने विचार आप अपने पास रखिये। हम भगवान के पुजारी हैं। धर्म की बात हम अच्छी तरह समझते हैं। भगवान के लिए ये चींटियाँ तो क्या, यदि किसी पशु का भी बलिदान कर दिया जाये; तो वह भी स्वर्गगामी होता है।' पुजारी से प्रतिवाद करना व्यर्थ समझकर सेठ ने महंत से पुजारी की शिकायत की और उसे समझाने के लिए कहा; पर महंत ने भी सेठ को उल्टा जवाब दे दिया। उसने कहा - यहाँ पर हमारे धर्म के अनुसार जो कुछ भी हो रहा है, ठीक ही हो रहा है। आपको पूजा में बैठना हो तो बैठ जाईये, अन्यथा घर जाइये। यह सब सुनकर सेठजी दुविधा में पड गये। धर्म के सही 'Shree Sadhainaswami Cyanbhaश्रीमुनिसबत स्वामी चरित ३८ MAMANLumaragvahbhandar.com
SR No.034967
Book TitleMunisuvrat Swami Charit evam Thana Tirth Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnanandvijay
PublisherRushabhdevji Maharaj Jain Dharm Temple and Gnati Trust
Publication Year1989
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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