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- प्रभू के शिष्यों में पाँचसौं मुनि चौदह पूर्व के ज्ञाता थे। अठारह सौ
मुनि अवधि ज्ञानी थे, पन्द्रह सौ मनःपर्यय ज्ञानी थे और अठारह सौ केवलज्ञानी थे। प्रभु के पास दो हजार मुनि वैक्रिय लब्धि संपन्न थे और बारह सौ वादी मुनि थे। एक लाख बहत्तर हजार श्रावक और तीन लाख पांच हजार श्राविकाएँ आदि गृहस्थ प्रभु के आराधक थे।
वरुण देव प्रभु शासन रक्षक था। इसी प्रकार स्फटिक के समान गौरवर्णीय नरदत्ता शासनदेवी थी। वरुणदेव जटाधारी और श्वेतवर्णी था। उसके चार मुख और तीन आँखें थीं। उसके आठ हाथ थे। दाहिनी ओर के चार हाथों में बीजोरा, गदा, बाण और शक्ति थी और बायीं ओर के हाथों में नकुल, माला, धनुष्य तथा परशु थे। उसका सवारीका साधन वृषभ था।
तीर्थंकर का समवसरण संसार का एक अद्भुत आश्चर्य होता है। उन्हें केवल ज्ञान होते ही देवगण समवसरण की रचना .. करते हैं। सम्यग्दृष्टि देवों के मन के परिणाम अत्यंत सुन्दर होने के कारण उन्हें तीर्थंकर परमात्मा के चरणों में अतीव आनन्द प्राप्त होता है। सब जीवों को धर्म की प्राप्ति हो और उन्हें स्वर्ग मोक्षादि की प्राप्ति हो इसी शुभहेतु सेवेसमवसरण की रचना करते हैं।
वायुकुमार देव एक योजन भूमि साफ करते हैं, मेघकुमार देव वहाँ सुगंधित छिडकते हैं, व्यन्तर देव सुवर्ण तथा रत्न पत्थरों से जमीन की सीमा बाँधते हैं और उस भूमि में पुष्पवृष्टि करते हैं तथा चारों दिशाओं में श्वेत छत्र, ध्वजा, स्तंभ आदि से युक्त तोरण बांधते हैं।
समवसरण के मध्य में भवनपति देव रत्न पीठ बनाते है और
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श्रीमुनिसुव्रत स्वामी चरित ३१ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com