________________
1
.
..
. -
-
प्रासंगिक जैन धर्म में तीर्थंकरों की परंपरा अनूठी है। तीर्थंकर परमात्मा विश्व तत्त्व के ज्ञाता तो होते ही है; पर साथ ही वे मोक्ष मार्ग के प्रकाशक भी होते है। वर्तमान अवसर्पिणी काल में इस भरत क्षेत्र में कुल चौबीस तीर्थंकर हुए हैं, जिन्होंने अपने अपने काल में . मोक्षमार्ग को प्रकाशित किया और साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका रुप चतुर्विध संघ की स्थापना की। उनके नाम इस प्रकार है -
श्रीऋषभदेवजी, श्री अजितनाथजी, श्रीसंभवनाथजी, श्री अभिनन्दनस्वामीजी, श्रीसुमतिनाथजी, श्रीपद्मप्रभुजी, श्रीसुपार्श्वनाथजी, श्रीचन्द्रप्रभस्वामीजी,
श्रीसुविधिनाथजी, श्रीशीतलनाथजी,
श्रीश्रेयांसनाथजी, श्रीवासुपूज्यस्वामीजी,
श्रीविमलनाथजी, श्रीअनन्तनाथजी, श्रीधर्मनाथजी, श्रीशांतिनाथजी, श्रीकुन्थुनाथजी. श्रीअरनाथजी, श्रीमल्लिनाथजी, श्रीमुनिसुव्रतस्वामीजी, श्रीनमिनाथजी, श्रीनेमिनाथजी, श्रीपार्श्वनाथजी और श्रीमहावीर स्वामीजी।। . त्रिषष्ठि शलाकापुरुष चरित्र में कलिकाल सर्वज्ञ श्री. हेमचंद्राचार्य महाराज ने इन तीर्थंकर भगवन्तों का चरित्र विस्तार से प्रकट किया है। इनमें से श्रीऋषभदेव, श्रीशान्तिनाथ, श्रीनेमिनाथ, श्रीपार्श्वनाथ.
Mi-10
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-umara, surat
narayanbhandar.com