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मेरी मेवाडयात्रा
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दयालशाह कटार ले गये ।. स्वाभाविक रूप से कटार खोलने पर वह चिट्ठी हाथ में आ गई। दयालशाह ने, वह चिट्ठी महाराणाजी को दे दी। राणा ने पुरोहित तथा रानी को प्राणदण्ड की सजा दी। रानी के पुत्र सरदारसिंह ने भी विष खा कर आत्महत्या कर ली।
महाराणा राजसिंहजी ने दयालशाह को अपनी सेवा में ले लिया और धीरे धीरे आगे बढ़ा कर उसे मन्त्री पद तक पहुँचा दिया।
दयालशाह वीर प्रकृत्तिवाला पुरुष था । उसकी बहादुरी के कारण ही, उसे महाराणा राजसिंह ने औरंगजेब के विरुद्ध युद्ध करने के लिये नियुक्त किया था। औरंगजेब की सेना ने अनेक हिन्दू मन्दिर तोड डाले थे। इसका बदला दयालशाह ने बादशाह के अनेक भवन अपने अधिकार में ले कर उनमें राणाजी के थाने स्थापित करके एवं मस्जिदें तोड़-तोड़ कर लिया था। दयालशाह, मालवे को लूट कर अनेक ऊँट सोना लाया था जौर महाराणाजी को वह सोना भेंट किया था।
इसी दयालशाह ने महाराणा जयसिंहजी के समय में चितौड़ में शाहनादे आजम की सेना पर रात को छापा मारा था। सेनापति दिलावरखां और दयालशाह के बीच युद्ध हुआ था । दयालशाहने अपनी स्त्री का अपने हाथ से, केवल इसी लिये वध कर डाला था, कि कहीं मुसलमान उसे
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