________________
६२
मेरी मेवाड़यात्रा नामक एक पुस्तक, स्वर्गस्थ गुरुदेव श्री विजयधर्मसूरिजी महाराजकी लिखी हुई प्रकाशित हो चुकी है । इस पुस्तक से देलवाड़े के सम्बन्ध में बहुत कुछ जानकारी प्राप्त की जासकती है। देलवाड़ा देखने वाला कोई भी दर्शक यह बात कह सकता है, कि किसी समय यहाँ बहुत से जैन मन्दिर होने चाहिए। प्राचीन-तीर्थमाला आदि में यहाँ बहुत से मन्दिर होने का उल्लेख मिलता है। और एक तीर्थमाला में तो यहाँ के पर्वतों पर शत्रुजय तथा गिरनार की भी स्थापना होने का उल्लेख मिलता है"देलवाड़ि छे देवज घणा ,
बहु जिनमन्दिर रळियामणा । दोइ डुंगर तिहाँ थाप्या सार,
श्री शजो ने गिरिनार" ॥३७॥ 'श्री शीलविजयजी कृत तीर्थमाला' (१७४६)
इस समय यहां तीन मन्दिर विद्यमान हैं। जिन्हें 'वसहि' कहा जाता है। ये मन्दिर अत्यन्त विशाल हैं। यहाँ भोयरे भी हैं । विशाल तथा मनोहर प्रभुमूर्तियों के अतिरिक्त यहाँ अनेक आचार्यों की भी मूर्तियां है । संवत् १९५४ में, यहाँ के जीर्णोद्धार के अवसर पर, १२४ मूर्तियां जमीन में से निकली थीं। प्राचीन काल में, यह एक विशाल नगरी थी । और कहा जाता है, कि किसी समय यहाँ तीनसौ घण्टों का नाद एक साथ सुनाई देता था। यानी, करीब तीनसौ या साढे तीनसौ मन्दिर यहां विद्यमान थे। इस नगरी में
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com