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विशेष सुविधा हो इस दृष्टि से संघने इसे बनवाया है । मन्दिर छोटा पर बड़ा मनोहर है । इसमें मूलनायक श्रीपार्श्वनाथप्रभु की एक हाथ ऊँची, श्वेतवर्ण प्रतिमा आस-पास दो प्रतिमाओं के सहित विराजमान है जो अर्वाचीन और दर्शनीय हैं। ___३ तृतीय मन्दिर शिखरबद्ध है। इसमें श्रीअजितनाथ भगवान् की पीतवर्ण, सपरिकर, एवं १२ हाथ बड़ी प्रतिमा विराजमान है ।
४ चतुर्थ जिनालय में श्रीपार्श्वनाथ भगवान की २ हाथ बड़ी श्वेतवर्ण प्रतिमा विराजमान है । इसकी प्राणप्रतिष्ठा संवत् १६५९ में जगद्गुरु श्रीविजयहीरसूरिजी के पट्टाधीश श्रीविजयसेनसूरिजीने की है। यहाँ के सब ही मन्दिरों में यह अधिक विशाल, ऊँचा एवं सुन्दर है । इसके मण्डप में १४ चौवीसी, एवं १ पंचतीर्थी है । इसकी सज-धज बड़ी ही मनोहारिणी है।
५ पश्चम जिनालय में भगवान् श्रीशान्तिनाथस्वामी की अतिभव्य प्रतिमा सपरिकर, एवं एक हाथ बड़ी है जो सं० १६२२ की प्रतिष्ठित है । मन्दिर सशिखर छोटा है, लेकिन बड़ा सुन्दर है ।
६ मन्दिर में भगवान् श्रीवासुपूज्यस्खामी की
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