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प्रतिमायें और भी इसमें विराजमान हैं जो प्राचीन एवं मनोरम हैं। ___ इस जिनालय के विषय में एक विस्मयपूर्ण दन्त-कथा भी प्रचलित है और उसका कुछ दिग्द. र्शन शिला-लेखों में भी मिलता है कि षण्डेरकगच्छीय आचार्य यशोभद्रसूरि और शैवयोगी तपे. श्वर के मन्त्र-प्रयोगों के विषय पर वाद-विवाद हुआ और शर्त की कि सूर्योदय के पहले कूकडे का शब्द होते ही अपने ध्येय को स्थगित कर देना । दोनों ही मन्त्रज्ञोंने अपनी-अपनी मन्त्रज्ञता प्रकट करने के लिये पालाणीखण्ड (खेड़नगर) अथवा किसी किसी के मत से वल्लभीपुर से जो काठीयावाड़ प्रान्त का एक बहु-समृद्धि पूर्ण नगर था, अपनेअपने मत के विशालकाय मन्दिर आकाश में उड़ाये और दोनों में यह निश्चय ठहरा कि दोनों में से जो भी प्रथम जाकर निश्चित नियम के अनुसार नाड. लाई में अपना मन्दिर स्थापित करेगा, जीता हुआ माना जायगा। आचार्य जब योगी से आगे निकल गये तो योगी को चिन्ता होने लगी। योगीने कूकड़े का रूप धारण किया और बोलना प्रारम्भ किया। आचार्यने समझा सूर्योदय होना चाहता है, अतः वे रुक गये । परन्तु कहीं सूर्योदय के लक्षण प्रतीत Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com