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गौरव एवं वैभव अंकित है यह ओसवाल, पोरवाल जाति के इतिहास से भलीभाँति भारत के हतिहासज मानते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि मरुस्थल का महत्व जैन-धर्म के विकाश के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है।
दो हजार से ऊपर वर्ष हो चुके जब स्वयम्प्रभसूरि, रत्नप्रभसूरि आदि जैनाचार्योंने मारवाड़ प्रान्त में पदार्पण किया था, इस विषय का आव श्यक उल्लेख हम ऊपर के लेखों में कर आये हैं। इन महापुरुषों के अविरल प्रयत्न से तथा आगे आनेवाले महदाचार्यों की बढ़ती हुई तत्परता एवं श्रमशीलता से जैनधर्म मारवाड़ प्रान्त में राष्ट्रीयधर्म बन गया था। विक्रम की छठी शताब्दि में मरुस्थल जैनधर्म की दृष्टि से प्रमुख प्रांत था । __गोड़वाड़ जिसका विशद् एवं शुद्ध नाम गौद्धार है इसी मरुस्थल की दक्षिण-पूर्व सीमा पर स्थित है। गोड़वाड़ इस समय मारवाड-जोधपुर राज्य का एक विभाग है। इससे पहिले इस भाग पर मेवाड़ के राणाओं का आधिपत्य रहा है । जैनधर्म मारवाड़ के इस प्रान्त में अपेक्षाकृत अधिक संपन्न, उज्वल, एवं विस्तार युक्त रहा है । इसी की पुष्टि हम यहाँ अपनी गोड़वाड़-प्रान्त की तीर्थयात्रा के वर्णन से
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