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कोई भी ऐसा ग्राम या नगर नहीं बचा जहाँ कोई जैन न हो। आप मरुस्थल को उत्तर से दक्षिण, पूर्व से पश्चिम एवं शेष चार कोणों में देख लीजिये कि जैनधर्म का प्रभाव कितना है ?। आबू के जैनमन्दिर जो मरुस्थल की दक्षिण-सीमा के छोर पर हैं, कितने भव्य, अनुपमेय एवं प्राचीन हैं। मध्य में कापरडा का विशाल चौमुखी गगनचुम्बी चैत्यालय आज भी अपना पूर्व गौरव उन्नत-मुख किये प्रगट कर रहा है । फलोदी का चैत्यालय वहाँ पर युगों पूर्व पड़े प्रभाव को प्रतिभाषित कर रहा है। ____ इधर कोरंट, ओसिया, नाकोड़ा, जाकोड़ा, वामनवाडा, भांडवपुर, सेसली तथा जालोर के अतिप्राचीन मन्दिर यवन-यौन-मुसलमान आक्रमणकारियों के आघातों को सहन करके शीत, आतप एवं वात के निरन्तर होनेवाले प्रहारों को झेल करके भी आज जैन-धर्म के गौरव को यथावत् रखने के लिये तथा भूत का गौरवपूर्ण इतिहास बने हुए अपना अस्तित्व रक्खे हुये हैं। गोड़वाड़ प्रान्त की पंच-तीर्थी भी मरुस्थल पर पड़ी उस प्राचीन प्रभाव को प्रकट करने के लिये प्रमाण रूप अपनी उसी जाज्वल्यावस्था में आज भी खड़ी हैं। इतना ही नहीं मरुस्थल पर जैन-बन्धुओं का कितना
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