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जहाँ अहर्निश अकृत्यमय कलह होता हो, सहृदयता व आत्मीयता का जहाँ सर्वथा अत्यन्ताभाव प्रदर्शित होता हो, मानवता के समुज्वल स्वर्णिल सुवों पर कालिमा लग गई हो, अनाचार एवं शिथिलाचार का चारों ओर नगाड़ा बज रहा हो। तात्पर्य यह है कि सर्वत्र अमानुषिकता मय सघन तिमिर का अतिशय विस्तार हो गया हो एवं चारों ओर विस्तृत अन्धकार में मानव मानव को न देखता हुआ पददलित हो रहा हो-अन्धकारमय अगम्य पथ पर भटकता हो, अवनति के आरोहावरोह में अतिशय तीक्ष्ण पाषाणों के कुठाराघात से आकुलित होता हुआ अचेतन हो रहा हो, समस्त जन अपने सम्पादित कार्य में सफल प्रयत्न होने के लिये प्रतिकूल परिस्थितियों से अविराम संघर्ष करते रहने पर भी असफल प्रयत्न होते हो, सफलता प्राप्त करने के लिये अकृतार्थ हो रहे हों, मतमतान्तरों के बढ़ जाने से परस्पर विद्वेष की मात्रा तीव-अप्रतिहत गति से परिवर्द्धित हो रही हो, तब एक अनुपम अद्वितीय · अलौकिक-विभूति ' की अतिशय प्रभावशालिनी तेजोमयी अपूर्व आभा का आविर्भाव होता है। जिसका चरम ध्येय रहता है अज्ञानतम का अपहरण कर, दुर्दोषों का परिदलन कर अपनी तेजोमयी रश्मियों से विश्व को आलोकित करते हुए संसार का कल्याण करना एवं
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