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हो, पुण्यभूमि भव्य भारत का पवित्र नन्दनवन जो अहर्निश धर्मकल्पद्रुम से प्रफुल्लित रहता था, अधार्मिक आँधी, एवं अकृत्य दुष्कृत्य पवन के प्रबल वेग से उजड़ता हो, तत्वज्ञ सत्कीर्तिशाली पूर्वज महापुरुषों द्वारा सुसम्पादित, पारम्परिक, अगी, अनुकरणीय, परमपवित्र धर्म, पाश्चात्य रंग में अतिशय रंगे हुए आधुनिक पार्थिव कठपुतलों को स्वात्मोन्नति या शर्म सूचक सुकृत कार्य में, बाधक रूपेण प्रतीत होता हो, सांसर्गिक दुर्व्यवहार से जहाँ भारतियों के पवित्र अन्तःकरण में दुर्भावना अपना स्वत्व-वैभव व्यक्तकरती हो, अन्योन्य प्रतिस्पर्द्धा, दौहार्दद्वेष, स्वार्थान्धता, निरुद्यमता, दौर्जन्यता, असैद्धान्तिकता, असद्भावुकता, अनाध्यात्मिकता, अनैतिकता, अधार्मिकता, आदि का संचार प्रारम्भ हो गया हो, भारतीय जन अतिशय प्रमाद के कारण तन्द्रा के वशीभूत हो प्रशान्त मन से निद्रादेवी की आराधना कर रहे हों, कुम्भकर्णीय नींद में घुल रहे होंपारस्परिक द्वेष विद्वेष से कुलगौरव का ह्रास हो रहा हो, अविद्या और अज्ञानता के आवरण में अकृत्य कृत्य हो रहा हो, पवित्र सदाचार विषयक शुद्धाचार विचार से सुसम्पन्न साध्वाचार से विहीन, अनाचारी शिथिलाचारियों की चारों ओर ब्युगुल बज रही हो, सद्धर्म का मार्मिक रहस्य जहाँ दुराचारियों से प्रच्छन्न एवं तिरस्कृत हो गया हो, साम्प्रदायिक या पारस्परिक परिवर्द्धित वैमनस्यता से
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