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________________ ~ ७४] मरणमोज १५-पं० राजेन्द्रकुमारजी न्यायतीर्थ-महामंत्री दि० जैन संघ अंबालाने जैन युवक परिषद इटावाके अधिवेशनमें प्रस्ताव रखा था कि "नुक्ताकी प्रथा जनधर्म एवं जैन शास्त्रोंके प्रतिकूल है, इसलिये किसी भी हालतमें मरणभोज नहीं होना चाहिये ।" इस प्रस्तावके विषयमें मापने भाष घंटा खूब प्रभावक भाषण भी दिया . था और कहा था कि मैंने स्वयं अपने पिताजीकी तेरई नहीं की, पं० परमेष्ठीदासने भी नहीं की, आप लोग भी प्रतिज्ञा करिये । तब उसी समय २०० भादमियोंने मरणभोजका त्याग कर दिया था। आदर्श त्यागियोंके विचार १६-पूज्य बाबा भागीरथजी वर्णी-आपने अपने पिताजीका नुक्ता न करके अच्छा मादर्श उपस्थित किया है। जनोंमें बहुत समयसे मरणभोजकी प्रथा घुसी हुई है। यह हिन्दुओंके श्राद्धका रूपान्तर है। मरणभोज जैनशास्त्र और जैनाचारकी दृष्टिसे उचित नहीं है । जैन समाजमें मरण मोजका होना मावश्यक नहीं, उसे बंद कर देना ही अच्छा है। खेखड़ामें मैंने इस प्रथाको बंद करा दिया है। यदि खण्डेलवाल, मारवाड़ी और बुन्देलखण्डके नैनी इस प्रथाका नाश कर दें तो समाजका कल्याण होजाय । इन्हींमें इसका विशेष प्रचार है । मरणभोजकी करुणाजनक घटनायें इतनी भयंकर होती रहती हैं कि उन्हें लेखनीसे लिखना अशक्य है। १७-धर्मरत्न पं. दीपचन्दजी वर्णी-जैनोंमें मरणभोजकी प्रथा कबसे भाई सो तो नहीं मालूम, किन्तु यह ब्रामणोंका मनुकरण है। इसका प्रचार भट्टारकोंके शिथिलाचारसे हुमा है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034960
Book TitleMaran Bhoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherSinghai Moolchand Jain Munim
Publication Year1938
Total Pages122
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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